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मौर्यकालीन कला और स्थापत्य कला in hindi for upsc students 2022

मौर्यकालीन कला और स्थापत्य कला क्या है?

बौद्ध धर्म और जैन धर्म के आगमन के पश्चात धीरे धीरे गंगा घाट का धार्मिक और सामाजिक दृश्य परिवर्तित होने लगा। क्योंकि इन दोनों धर्मों को वैदिक युग की वर्ण प्रथा और जाति प्रथा के नियम कानून अच्छे नहीं लगे और दोनों इसका विरोध करते थे। और इन दोनों धर्मों को उन क्षत्रिय शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ जो वैदिक युग की प्रथा के वर्चस्व से सजग हो चुके थे। और इन्हीं शासकों में मौर्य का भी नाम जुड़ गया जब उन्होंने अपनी सत्ता की स्थापना की।
मौर्यकालीन कला को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है।

दरबारी कला - 

मौर्यकालीन शासकों ने अपनी राजनीति और धार्मिक कारणों से अधिक संख्या में स्थापत कार्यों का शुरुआत किया शुरुआत किया। इस अस्थापथ कार्यों को दरबारी कला के रूप में जाना जाता है इस कला के अंतर्गत महल या किला,स्तंभ,स्तूप का निर्माण किया गया है।

महल या किला -

 मौर्य साम्राज्य भारतीय सत्ता में आने वाला पहला शक्तिशाली साम्राज्य था। इन्होंने साम्राज्य का वैभव दिखाने के लिए पाटलिपुत्र में राजधानी और कुमराहार में महलों का निर्माण कराया। इनके महल ईरान के महलों से प्रेरित था। इन महलों में मुख्य निर्माण सामग्री लकड़ी हुआ करती थी। कुमराहार स्थित अशोक का महल भी एक विशाल संरचना की थी। इसमें एक ऊंचा केंद्रीय स्तंभ था।और एक तीन मंजिला लकड़ी का ढांचा था।


स्तंभ - 

अशोक के शासनकाल में स्तंभों पर शिलालेख उनकी राजकीय प्रतीक और युद्ध में जीत के उपलक्ष में किए जाते थे। और इन्होंने राजकीय उपदेशों का प्रचार करने के लिए स्तंभों का उपयोग किया था।
अवश्य तन 40 फीट ऊंचे यह स्तंभ ज्यादातर चुनार के बलुआ पत्थर द्वारा बनाए जाते थे और इन के 2 मुख्य भाग शाफ्ट और कैपिटल शामिल थे। इसमें लंबा भाग साफ्ट आधार का निर्माण करता था। और यह पत्थर का एक ही खंड से बना होता था। इसके ऊपर कमलिया या घंटे के आकार में शीर्ष या कैपिटल रखा जाता था कैपिटल ईरानी स्तंभों से प्रभावित थे। क्योंकि इनमें अधिक पालिश और चमक थे। कैपिटल के ऊपर वृत्ताकार या आयताकार आधार होता था। जिसे अबेकस कहा जाता है इस पर पशु मूर्ति होती थी।

उदाहरण:-चंपारण में लोरिया नंदनगढ़ स्तंभ बनारसी के पास सारनाथ स्तंभ इत्यादि।


स्तूप -

स्तूप वैदिक काल से ही भारत में शवाधान टीले के रूप में प्रचलित थे। इसमें मृतकों के अवशेष और राख को रखा जाता था। अशोक के समय में स्तूप कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई। अशोक के समय में लगभग 84000 स्तूप बनाए गए थे। वैदिक परंपरा में बौद्धों द्वारा स्तूप को लोकप्रिय बनाया गया था। बुध की मृत्यु के बाद 9 स्तूप बनवाए गए।
स्तूप का कोड कच्ची ईंटों का बना होता था और बाहरी सत्ता पक्की ईंटों से बना था और प्लास्टर द्वारा इसे ढका जाता था। मेथी और तोरण को लकड़ी की मूर्ति द्वारा सजाया गया था।
उदाहरण : मध्य प्रदेश का सांची का स्तूप

अशोक के स्तंभ और ईरान स्तंभों के बीच अंतर :-

  • अशोक स्तंभ एक ही पत्थर के खंड को काटकर बनाया गया था जबकि ईरानी स्तंभ बलुआ पत्थर के विभिन्न टुकड़ों के आपस में जोड़कर बनाया गया था।
  • अशोक के स्तंभ को स्वतंत्र रूप से स्थापित किया जाता था जबकि ईरानी स्तंभ को राज भावनाओं से संलग्न रखा जाता था।

लोकप्रिय कला :-

राजकीय संरक्षण के अतिरिक्त गुफा स्थापत्य कला,मूर्तिकला और मृदभांडओ के भी साक्ष्य प्राप्त हुए।

गुफा स्थापत्य कला-

मौर्य काल के दौरान चट्टानों को काटकर गुफा स्थापित कला का उद्भव हुआ। इस समय काल के दौरान जैन एवं बौद्ध भिक्षु इन गुफाओं का उपयोग निवास के लिए करते थे। और बाद में यह गुफाएं बौद्ध मठों के रूप में लोकप्रिय हो गए। इस काल की गुफाओं की विशेषता क्या थी कि यह गुफाएं अधिक पॉलीस्दार और प्रवेशद्वार अलंकृत होते थे।
उदाहरण ;- बिहार में बराबर और नागर्जुनी की गुफा का निर्माण अशोक एवं उनके पोते के दौरान हुआ।
मूर्तिकला :-
इस कॉल के दौरान मूर्तियों का अधिकतर उपयोग स्तूप की सजावट, तोरण और मेथी में धार्मिक अभिव्यक्ति के लिए किया जाता था। इस काल के दौरान दो प्रसिद्ध मूर्तियां यश और यक्षिणी की है। यह मूर्तियां तीनों धर्म जैन, हिंदू और बौद्ध से संबंधित थी। यक्षिणी का सबसे पुराना उल्लेख तमिल रचना शिल्पादीकारम में मिलता है।

मृदभांड :-

मौर्य काल के मृदभांड को सामान्यता काले पालिशदार मृदभांड के रूप में जाना जाता था। यह काले रंग के और अधिक चमक वाले होते थे। इनका उपयोग अधिकतर विलासिता की वस्तुओं के लिए किया जाता था।

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