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हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत स्थापत्य कला //Architecture under Harappan Civilization

हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत स्थापत्य कला (Architecture under Harappan Civilization)



हड़प्पा सभ्यता स्थापत्य कला के दृष्टियों से विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण रही है। इस सभ्यता के अंतर्गत हमें दो प्रकार के स्थापत्य मिलते हैं। 
प्रथम राजनीतिक एवं सांस्कृतिक महत्व के भवन (Buildings of political and cultural importance), 
दूसरे सामान्य रिहायसी मकान (Residential house)।

इन भवनों के निर्माण में कई प्रकार के कच्चे मालों का प्रयोग हुआ है उदाहरण के लिए पकायी गई ईंटें ,कच्ची ईंटे तथा पत्थर। धौलावीरा तथा सुरकोटदा में होने वाले अधिकांश निर्माण कार्य में पत्थरों का प्रयोग देखा जा सकता है।

निर्माण कार्य में हड़प्पाई लोगों ने सौन्दर्य की जगह उपयोगिता पर विशेष बल दिया था। भवनों के निर्माण में जोड़ने वाली सामग्री के रूप में गीली मिट्टी के साथ-साथ जिप्सम एवं डॉमर का उपयोग होता था।

मोहनजोदड़ो कांस्य युग में विश्व का सबसे बड़ा नगर था यह दो भागों में विभाजित था दुर्ग तथा निचला शहर ,दुर्ग या किला ऊँचे चबूतरे पर निर्मित था। इस चबूतरे का निर्माण कच्ची ईंटों के प्रयोग से हुआ था।

 दुर्ग के अन्दर कई बड़े भवन थे जो प्रशासनिक एवं सांस्कृजेडतिक महत्व के प्रतीत होते थे। इन भवनों का निर्माण पक्की ईंटों से हुआ था। 

मोहनजोदड़ो का एक महत्वपूर्ण स्थापत्य है स्नानागार। इसकी लम्बाई 11.88 मीटर तथा चौड़ाई 7.01 मीटर तथा गहराई 2.042 मीटर थी। इस महास्नानागर तक पहुंचने के लिए दोनों तरफ सीढ़ियां बनी हुई थीं। 

मोहनजोदड़ो के स्नानागार के कुण्ड के तल को डॉमर का लेप चढ़ाकर जलरोधी बनाया गया था। पानी निकालने के लिए नालियाँ बनायी गयी थीं। कुंड के चारों ओर कमरे निर्मित थे।

 इस विशाल स्नानागार के एक तरफ एक लंबी इमारत थी यह 230 फिट लंबी एवं 78 फीट चौड़ी थी। 

यह किसी उच्चाधिकारी का निवास प्रतीत होती है मोहनजोदड़ो स्थित सबसे बड़ा स्थापत्य स्नानागार था। यह पक्की ईंटों से निर्मित था तथा 27 खण्ड़ों में विभाजित था। इसकी लम्बाई 45-71 मीटर तथा चौड़ाई 15.22 मीटर थी। 

इस प्रकार का अन्नागार हड़प्पा से भी प्राप्त हुआ है किंतु हड़प्पा से प्राप्त अन्नागार छ: छ: की संख्या में दो कतारों में निर्मित है। प्रत्येक की लंबाई 15.23 मीटर तथा चौड़ाई 6.09 मीटर है। फिर भी आकार की दृष्टि से लोथल से प्राप्त गोदीवाड़ा कहीं बड़ा है। कालीबंगा में ईंटों के बने चबूतरों पर सात अग्नि कुंड के साक्ष्य मिले हैं।

जैसाकि हम देखते है हड़प्पाई स्थापत्य की एक बड़ी विशेषता है बड़ी संख्या में पकाये गये ईंटों का प्रयोग। यद्यपि यह प्रयोग मोहनजोदड़ों की तुलना में अन्य स्थलों पर कम मिला है। फिर भी समकालीन सभ्यताओं से तुलना करने पर यह विशिष्ट प्रतीत होता है ।

 पकायी गयी ईंटों का प्रयोग न केवल राजनीतिक एवं सांस्कृतिक महत्व में सम्बंधित स्थापत्य में करन सामान्य घरों के निर्माण में भी हुआ है। जैसा कि हम देखते है कि सामान्य निवास एक मंजिली से बहुमंजिली तक होता था। बड़े मकानों में एक चौरस प्रांगन होता था तथा लगभग 12 कमरे होते थे।

 इसके अतिरिक्त कुएँ, शौचालय, स्नानागार सबों के लिए जगह बनायी जाती थी। कमरों का निर्माण प्रांगण के चारों ओर किया जाता था। इन मकानों में दरवाजे तथा खिड़की का निर्माण विशिष्ट है क्योंकि प्रायः इनका निर्माण मकान के पिछले भाग में किया जाता था। ऐसा संभवत: सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया गया होगा। 

फिर एक विशिष्ट चीज जो हड़प्पा सभ्यता को पूर्ववर्ती एवं परवर्ती संस्कृतियों से अलग करती थी वह है ईंटों के निर्माण में मानकता । यह तथ्य दर्शाता है कि ईंटों का निर्माण अलग-अलग व्यक्ति के द्वारा न करके सामूहिक रूप से किसी संस्था के अंतर्गत किया जाता था। किंतु हड़प्पा सभ्यता के पतन के पश्चात् यह प्रवृत्ति लुप्त हो गई।

 इस प्रकार हड़प्पाई लोगों ने स्थापत्य निर्माण भी एक सम्मिलित परंपरा कायम की तथा हड़प्पाई स्थापत्य ने परवर्ती काल में भी भारतीय स्थापत्य एवं संरचना को प्रभावित किया। 


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