प्रश्न:- भारत में नवपाषाण मानव की प्रगति को समझने में पुरातात्विक सामग्रियाँ किस सीमा तक उपयोगी है? UPSC, 2010
उत्तर:- नवपाषाणकालीन मानव की गतिविधियों की सूचना हमें पुरातात्विक साक्ष्यों से ही प्राप्त होती है क्योंकि, इस काल में किसी भी प्रकार का साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।
फिर पुरातात्विक साक्ष्यों की भी अपनी सीमा है किंतु इन सीमाओं के बावजूद भी ये आरम्भिक कृषक एवं पशुचारकों के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं।
नवपाषाण काल वह काल है जब मानव शिकारी और खाद्य संग्रहक की स्थिति से खाद्य उत्पादक की स्थिति में पहुंचा। अब आर्थिक गतिविधियाँ पशुचारण एवं कृषि से संबद्ध हो गयी। फिर विभिन्न नवपाषाणकालिक स्थलों के आर्थिक विकास में भी अंतर है
मेहरगढ़ से भिन्न प्रकार के गेहूं और जौ की खेती तथा कपास के साक्ष्य मिले हैं, गंगा यमुना दोआब व बंगाल के स्थलों से चावल के साक्ष्य मिलते हैं जबकि दक्षिण भारत से रागी का साक्ष्य मिला है।
दक्षिण भारत में कृषि गौण पेशा बनी रही मुख्य कार्य पशुचारण ही रहा। फिर इस काल में हमें व्यापारिक गतिविधियों का भी साक्ष्य मिलता है क्योंकि कुछ स्थल पर ऐसी वस्तुएं प्राप्त हुई हैं जो क्षेत्रीय स्तर पर उपलब्ध नहीं है।
पुरातात्विक साक्ष्य कुछ हद तक सामाजिक संरचना पर भी प्रकाश डालते हैं। लोग स्थायी जीवन जीने लगे थे, बेलनघाटी के चौपानी मांडो नामक स्थल से मध्यपाषाण काल से नवपाषाण काल के बीच संक्रमण की अवस्था का ज्ञान होता है। फिर इस काल में संभवतः सामाजिक विभाजन की भी शुरूआत हो चुकी थी।
मकानों की बनावट (आयताकार एवं गोलाकार) तथा शवाधान से प्राप्त सामग्रियों की गुणवत्ता के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि धनी एवं निर्धन के बीच अंतर शुरू हो गया था तथा एक प्रकार का मुखियातंत्र अस्तित्व में आ चुका था ।
उसी प्रकार कब्र में रखी गयी सामग्रियों के आधार पर ही यह अनुमान किया जा सकता है कि लोगों ने मृत्यु के बाद के जीवन की अवधारणा विकसित कर ली थी। फिर मातृदेवी एवं कुबड़ वाले सांड की मृण्मूर्तियां यह दर्शाती है कि लोग उत्पादक शक्ति की उपासना की ओर उन्मुख हुए थे।
यह बहुत ही स्वाभाविक था क्योंकि अर्थव्यवस्था खाद्य उत्पादन की स्थिति में पहुंच चुकी थी ।
किंतु पुरातात्विक साक्ष्यों में बहुत कुछ अनकहा रह गया है। यह सामाजिक जीवन पर सीमित प्रकाश डालता है। इससे राजनीतिक जीवन की तो सूचना ही नहीं मिल पाती।
उसी प्रकार धर्म के क्षेत्र में केवल सतही बातों का ज्ञान हो पाता क्योंकि धर्म-दर्शन का ज्ञान तो साहित्यिक साक्ष्य ही प्रदान कर सकते हैं।
अंत में मेहरगढ़ जैसे कुछ स्थल ऐसे हैं जिसकी क्षैतिज खुदाई हो सकी है इसलिए क्षैतिज खुदाई के अभाव में भी हमें सीमित सूचना ही प्राप्त हो पाती।
इस तरह पुरातात्विक सामग्रियां नवपाषाण मानव की प्रगति के विषय में सीमित सूचना ही दे पाती है।
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