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महमूद का भारत पर आक्रमण (Mahmud's invasion of India)

महमूद का भारत पर आक्रमण 


इलियट तथा डाउसन ने भी 17 आक्रमणों का उल्लेख किया है । 

1. सीमान्त प्रदेशों पर आक्रमण

सर्वप्रथम महमूद ने 1000 ई . में जयपाल के सीमान्त प्रदेशों को लूटा और जीते हुऐ स्थानों पर अपना एक हाकिम को बैठा दिया। जयपाल उसके पिता सुबुक्तगीन का  शत्रु था। जयपाल की राजधानी ' ओहिन्द ' में थी ।

2. पेशावर पर आक्रमण
जयपाल के कुछ प्रदेश जीत लेने के बाद जयपाल ने प्रत्याक्रमण (Counterattack) की तैयारी की । 1001 ई . के 28 नवम्बर को दोनों सेनाओं की लड़ाई पेशावर में हो गयी। महमूद के पास 15000 अच्छे घुड़सवार थे । जयपाल की सेना में 12000 और 30000 पैदल तथा 3000 हाथी थे । दोनों सेनाओं में भयानक (Horrible) युद्ध हुआ,किन्तु जयपाल की हार हुई । उसके पन्द्रह हजार सैनिक मारे गये । महमूद को लूट में अपार सम्पत्ति मिली । अन्त में जयपाल उसके साथ एक अपमानजनक सन्धि करने के लिए मजबूर हुआ । सन्धि के अनुसार जयपाल ने 50 हाथी और 25000 दिरहम देना स्वीकार किया । जब तक जयपाल यह धनराशि चुकता न कर दे तब तक के लिए उसके पौत्र को बन्धक के रूप में गजनी के दरबार में रहना था । बार - बार की पराजय से उसे बहुत दुःख हुआ। अतः 1002 ई. में आनन्दपाल को अपना उत्तराधिकारी बनाकर स्वयं चिता से मर गया । 

3. भेरा तथा भटिण्डा पर आक्रमण-

यह नगर झेलम नदी के बायें किनारे पर स्थित था । भटिण्डा इस समय का प्रसिद्ध दुर्ग था । उस समय यहाँ बीजीराय नामक एक वीर एवं साहसी व्यक्ति शासन कर रहा था । महमूद ने भटिण्डा पर आक्रमण न करके गंगा - यमुना के दोआब पर आक्रमण करना उचित समझा । बीजीराय सुबुक्तगीन का मित्र था । अतः महमूद को आशा थी कि जब वह भारत पर आक्रमण करेगा तो वह ( बीजीराय ) उसकी सहायता करेगा । परंतु जब उसने जयपाल पर आक्रमण किया तो उसने महमूद की मदद न की । इसी कारण महमूद गजनवी ने भटिण्डा पर आक्रमण किया । 3 दिन तक भीषण युद्ध हुआ 4थे दिन बोजीराय की पराजय हुई और वह बन्दी बना लिया गया , फिर उसने आत्महत्या कर ली । नगर की लूट तथा कोष से बहुत सी धन -धान और 280 हाथी प्राप्त हुए । 

4. मुल्तान पर प्रथम आक्रमण- 

यहाँ का शासक अब्दुल फतह दाऊद था । वह ' इस्माइली सम्प्रदाय ' का समर्थक था जो कि इस्लामी सिद्धान्तों से भिन्न था । इसलिए महमूद उसे हिन्दुओं से भी बुरा समझता था । दूसरे दाऊद ने उसके विरुद्ध बीजीराय की भी सहायता की थी । 1005 ई . के  रूप में दिया । महमूद गजनवी  ने मुल्तान का शासन जयपाल के पोते सेवकपाल या सुखपाल  को दिया जिसे मुसलमान बना लिया गया था जिसका नाम नौशाशाह रखा गया था । महमूद के चले जाने के बाद वह इस्लाम धर्म त्याग कर स्वतन्त्र हो गया । 

5. सेवकपाल पर आक्रमण-

महमूद को जब सेवकपाल के स्वतन्त्र होने की सूचना मिली तो वह बहुत क्रुद्ध हुआ और सेवकपाल पर आक्रमण करके उसे बन्दी बना लिया । जुर्माने के रूप में सेवकपाल ने चालीस हजार दिरहम दिये , फिर भी उसे जीवनभर के लिए । कैदखाने में डाल दिया गया । 


6. राजा आनन्दपाल पर आक्रमण

आनन्दपाल ने मुल्तान के शासक दाऊद की महमूद के विरुद्ध सहायता की थी और प्रतिशोध की भावना से महमूद ने लाहौर पर आक्रमण किया । आनन्दपाल की तैयारी अच्छी थी । इस युद्ध में ग्वालियर , कन्नौज , दिल्ली , उज्जैन , कालिंजर , अजमेर के शासकों तथा पंजाब की खोखर जातियों ने उसकी सहायता की थी । कहा जाता है कि यहाँ स्त्रियों ने अपने आभूषण तक बेचकर जयपाल की सहायता की थी दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ । युद्ध की भीषणता से महमूद को विजय की आशा बिल्कुल न रही हिन्दुओं की विजय होने ही वाली थी परन्तु दुर्भाग्य से इसी समय आनन्दपाल का हाथी बिगड़ गया और मैदान से भाग खड़ा हुआ । भारतीय सेना ने समझा कि हमारा सेनापति भाग गया है । अतः उनका उत्साह भंग हो गया । वे भी मैदान से भाग खड़े हुए । महमूद की सेना भागती हुई भारतीय सेना का पीछा किया । अनेक हिन्दू बन्दी बनाये गये और कत्ल कर दिये गये । सम्भवतः आनन्दपाल भी पकड़कर युद्धभूमि में मार डाला गया । आनन्दपाल की पराजय ने महमूद के भावी विजय के मार्ग को प्रशस्त कर दिया । अब पंजाब पर महमूद की विजय सुनिश्चित हो गयी । 

7. नगरकोट की विजय

आनन्दपाल की पराजय से महमूद गजनवी का साहस बढ़ गया । अतः 1109 ई . में उसने नगरकोट पर आक्रमण कर दिया । यह दुर्ग पंजाब के कांगड़ा जिले में एक पर्वतीय चोटी पर स्थित था और अपनी अपार सम्पत्ति के लिए प्रसिद्ध था । महमूद ने नगर का घेरा डाल दिया तीन दिन तक युद्ध होता रहा अन्त में महमूद विजयी हुआ । महमूद वहाँ से सोना - चाँदी , हीरे - जवाहरात आदि लूटकर गजनी वापस चला गया । 

8. तालावड़ी का युद्ध - 

1010 ई . में महमूद गजनवी ने तालावड़ी पर आक्रमण किया । हिन्दू सेना वीरता से लड़ी किन्तु विजयश्री ने महमूद का वरण किया , जिसके फलस्वरूप लूट में उसे अतुल धन - सम्पत्ति मिली । 

9. मुल्तान पर द्वितीय आक्रमण

मुल्तान का शासक अब्दुल फतह दाऊद स्वतन्त्र हो गया था । अत : महमूद ने 1010-11 ई . में सुल्तान पर द्वितीय आक्रमण किया । दाऊद को इस बार भी मुँह की खानी पड़ी । किन्तु मुल्तान पर पुन : दाऊद का अधिकार हो गया । 

10. थानेश्वर पर आक्रमण-

 महमूद ने यह सुन रखा था कि थानेश्वर हिन्दुओं के लिए उतना ही पवित्र था जितना कि मुसलमानों के लिए मक्का यहाँ चक्रवर्ती स्वामी का एक पवित्र मन्दिर था । इस मन्दिर को तोड़ने के लिए वह पंजाब पहुँचा सतलज के पूर्वी किनारे से राजा राम ने उसका उग्र विरोध किया । महमूद जब थानेश्वर पहुँचा तो वह भाग गया । महमूद ने मनमाने ढंग से नगर को लूटा और मन्दिर तथा मूर्तियों को नष्ट कर डाला । इस आक्रमण में भी महमूद को पर्याप्त धन सम्पत्ति प्राप्त हुई । .

11. लाहौर पर आक्रमण

आनन्दपाल की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र त्रिलोचनपाल पंजाब का शासक हुआ । वह एक दुर्बल शासक था , किन्तु उसका पुत्र भीमपाल बहुत साहसी एवं निर्भीक था । महमूद ने लाहौर पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की और यहाँ भी वही किया जो अन्यत्र किया । इस बार पंजाब को उसने अपने राज्य में मिला लिया था । 

12. कन्नौज तथा मथुरा पर आक्रमण- 

1018 ई . में महमूद ने अन्तर्वेद पर आक्रमण करने का निश्चय किया । पंजाब और मुल्तान के मार्ग में उसे प्रवल शक्तियों का सामना करना पड़ा । अत : इस बार उसने अधिक उत्तरीय मार्ग को अपनाया और यमुना नदी के पहाड़ी क्षेत्र पार करके बरन ( बुलन्दशहर ) तथा महावना गढ़ों को जीतता हुआ तथा लूटता हुआ मथुरा पहुँचा । वहाँ के मन्दिरों की अद्भुत पच्चीकारी देखकर महमूद चकित रह गया । महमूद ने यहाँ भी खूब सम्पत्ति प्राप्त की और अनेक मन्दिर ध्वस्त कर दिये । उसने अपनी विजय के उपरान्त अनेक भारतीय कारीगर पकड़वा लिये ताकि वह गजनी को भव्य नगरों से अलंकृत करा सके । इसके पश्चात् 1019 ई . में वह कन्नौज पहुँचा यहाँ प्रतीहार वंशी शासक राज्यपाल शासन कर रहा था । वह दुर्बल शासक था । वह आत्मसम्मान का ध्यान न रखकर युद्ध किये बिना ही युद्ध मैदान से भाग गया । इस प्रकार महमूद बिना प्रयास के ही कन्नौज पर विजय प्राप्त कर लिया । 

13. कालिंजर पर आक्रमण

महमूद के लौट जाने के बाद राज्यपाल के पड़ोसी राजाओं ने कालिंजर के चन्देल राजा गण्ड के नेतृत्व में एक संघ बनाया और राज्यपाल को राजपूतों के नाम को कलंकित करने का दण्ड देने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया और उसे मार डाला । इससे महमूद बहुत क्रोधित हुआ और गण्ड को दण्डित करने चल पड़ा । सर्वप्रथम आनन्दपाल का पुत्र त्रिलोचनपाल पराजित हुआ । चन्देल राजा की विशाल सेना देखकर महमूद घबरा गया और अल्लाह से प्रार्थना की । सौभाग्य से अल्लाह ने उसकी प्रार्थना सुन ली और राजा गण्ड पता नहीं क्यों रात्रि में बिना लड़े ही भाग खड़ा हुआ । महमूद ने यहाँ भी मनमाने ढंग से लूट की और गजनी चला गया । 

14. ग्वालियर तथा कालिंजर-

 महमूद के चले जाने के बाद राजा गण्ड अपने राज्य पर पुनः शासन करने लगा । महमूद ने उसे परास्त करने के लिए 1022 ई . में पुनः आक्रमण किया । मार्ग में उसने ग्वालियर के राजा को परास्त किया और फिर कालिंजर पर आक्रमण करके आगे बढ़ा । राजा गण्ड ने अपने राज्य को व्यर्थ के रक्तपात से बचाने के लिए महमूद से सन्धि कर ली और उसे तीन सौ हाथी तथा अन्य बहुमूल्य वस्तुएँ देकर सन्तुष्ट किया । 

15. पंजाब पर आक्रमण- 

1022 ई . में पंजाब की पुनर्व्यवस्था के लिए महमूद ने पंजाब के लिए प्रस्थान किया और सर्वप्रथम स्कत तथा बाजौर आदि जातियों को परास्त किया और फिर पंजाब की व्यवस्था करके वहाँ अपना एक गवर्नर नियुक्त कर दिया । 

16. सोमनाथ पर आक्रमण- 

सोमनाथ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आक्रमण 1025-26 ई . में सोमनाथ के मन्दिर पर हुआ । यह प्रसिद्ध शिव मन्दिर गुजरात के समुद्रतट पर स्थित था यह भारत के सभी मन्दिरों में सिरमौर माना जाता था । महमूद ने इस मन्दिर की अपार धन सम्पत्ति को लूटने के उद्देश्य से 1025 ई . में प्रस्थान किया । वह मुल्तान , सिन्ध और राजपूताना के रेगिस्तानी मार्ग से गुजरात की ओर चला और मार्ग में छुट - पुट युद्ध करता हुआ काठियावाड़ पहुँच गया । काठियावाड़ के पश्चिमी किनारे पर सोमनाथ का मन्दिर स्थित था । हिन्दुओं ने महमूद का डटकर मुकाबला किया । तीन दिन तक युद्ध चलता रहा । अन्त में हिन्दू परास्त हुए । महमूद ने सोमनाथ के मन्दिर में प्रवेश किया और पचास हजार से अधिक ब्राह्मणों तथा अन्य हिन्दुओं का वध कर दिया । मन्दिर नष्ट - भ्रष्ट कर दिया और मूर्ति तोड़ दी गयी । मूर्ति के टुकड़े गजनी , मक्का तथा बगदाद भेज दिये गये । इस मन्दिर से महमूद को अपार सम्पत्ति हाथ लगी । कहा जाता है कि दो सौ ऊँट सोने - चाँदी के वजन से कराहते हुए गजनी ले जाये गये । सुल्तान कच्छ , सिन्ध तथा मुल्तान होता हुआ गजनी चला गया । 

17. जाटों पर आक्रमण-

1027 ई . में महमूद ने पंजाब के सिन्ध पर आक्रमण किया , क्योंकि सोमनाथ के मन्दिर पर आक्रमण के समय गजनी वापस जाते समय जाटों ने उसे खूब तंग किया था । जाट पराजित हुए । महमूद ने अनेक जाटों का वध कर दिया । 1030 ई . में महमूद की मृत्यु हो गयी ।

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