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मंदिर वास्तुकला( temple architecture)की द्रविड़ शैली (Chola Architecture) हैं?

मंदिर वास्तुकला( temple architecture)की द्रविड़ शैली (चोल वास्तुकला) क्या है?


चोल शासकों ने अपनी संरक्षण में दक्षिण भारत की बहुत सारी मंदिर बनवाएं इन 1 दिनों में पल्लव वास्तुकला की विशेषताएं बनी रही किंतु इसमें कुछ विशेष बदलाव हुए थे इसी मंदिर वास्तुकला को द्रविड़ शैली के रूप में जाना जाता है।
द्रविड़ शैली की अनेक विशेषताएं हैं।
  • द्रविड़ शैली के मंदिर चारदीवारी से गिरे होते थे। जो कि आपको नागर शैली के मंदिरों में दिखाई नहीं पड़ता।
  • नागर शैली(nagar style) के मंदिरों में प्रवेश द्वार नहीं होता था किंतु द्रविड़ शैली के मंदिरों में प्रवेश द्वार होते थे जिन्हें गोपुरम कहा जाता था।
  • नागर शैली की भांति ही द्रविड़ शैली का परिसर भी पंचायतन शैली (Panchayatan style)में बनाया गया था।
  • द्रविड़ शैली में मंदिर के शिखर पिरामिड नुमा होते थे जोकि घुमावदार नहीं होकर ऊपर की तरफ सीधे होते थे। इन शिखर को विमान कहा जाता था।
  • नागर शैली के मंदिर की भाती द्रविड़ वास्तुकला में भी विमान के शीर्ष पर एक अष्टकोण शिखर होता था लेकिन यह कलर्स के समान गोलाकार नही था।
  • नागर वास्तु कला के तरह द्रविड़ वास्तुकला कला में सभी मंदिरों पर विमान नहीं होता था केवल मुख्य मन्दिर के शीर्ष पर विमान होता था।
  • अंतराल नाम के एक गलियारे द्वारा गर्भ ग्रह और सभा हाल को जोड़ा जाता था।
  • यच की मूर्तियां, द्वारपाल और मिथुन की मूर्तियां प्रवेश द्वार पर गर्भ ग्रह के लगाया जाता था।
  • द्रविड़ शैली की एक मुख्य विशेषता या थी कि मंदिर परिसर में ज्लास्य की उपलब्धता थी।

चोल मूर्ति कला के विषय में:-

चोर मंदिरों को सजाने के लिए मूर्तियों पर विशेष ध्यान दिया जाता था। चोल मूर्ति कला का एक बेहतरीन उदाहरण नृत्य मुद्रा में नटराज की मूर्ति थी। इस मूर्ति के द्वारा ही यह अनुमान लगाया जाता है कि चालुक्क शासन के दौरान भी नटराज मूर्तियां बनाई गई थी परंतु चोल शासन के दौरान यह कला अपनी शीर्ष ऊंचाइयों पर पहुंच गई।
नटराज की मूर्ति की कुछ विशेष बातें।
  • नटराज मूर्तियां में ऊपरी दाहिने हाथ में डमरू है।
  • नटराज मूर्तियां में ऊपरी बाएं हाथ में शाश्वत अग्नि है।
  • नटराज मूर्तियां में निचला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है।
  • नटराज मूर्तियां में निचला बाया हाथ उठे हुए पैर की तरफ इशारा करता है यह मोच के मार्ग को बताता है।
  • नटराज मूर्तियां में शिव तांडव नृत्य एक छोटे होने की आकृति के ऊपर कर रहे हैं।
  • शिव की हवा में लहराते बाल गंगा नदी के प्रवाह को दर्शाता है।
  • इन्हें अर्धनारीश्वर के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह एक कार में पुरुष और दूसरे कान में महिला की बाली पहने हुए हैं।
  • नटराज मूर्तियां में कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक सर्प शिव के मां के चारों ओर लिपटा हुआ है।
  • शिव की यह मुद्रा रूप एक प्रकाश मंडल से पूरी तरह से गरी हुई है जो समय के विशाल चक्र को दर्शाता है

मन्दिर निर्माण कि अन्य शैली के विषय में:-

नायक शैली क्या है :

16वीं शताब्दी से 18वी शताब्दी के मध्य नायक शासकों के द्वारा मंदिर वास्तुकला की नायक शैली विकसित हुई।
इस शैली को मदुरै शैली भी कहते हैं।
संरचना की दृष्टि से यह शैली भी चोल शैली की तरह दिखाई पड़ती थी।
यहां इस्लामी शैली का प्रभाव भी था।
नायक शैली के कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्न प्रकार है 
गर्भ ग्रह के चारों ओर बड़े गलियारे का निर्माण हुआ जिसे पराक्रम कहा जाता था।
इस मंदिर में छत दार परिक्रमा करने के लिए पथ का निर्माण हुआ था जिसे प्रदक्षिणा पथ कहा जाता है।
नायक शासकों के द्वारा सबसे बड़े प्रवेश द्वार बनाए गए थे जिसमें मदुरई के मीनाक्षी मंदिर का प्रवेश द्वार (जिसे गोपुरम कहते हैं ) दुनिया का सबसे ऊंचा प्रवेश द्वार है।
गोपुरम (प्रवेश द्वार) की कला नायक शायरी में बुलंदियों तक पहुंचा।
मंदिर के हर स्थान पर बारीक नक्काशी की जाती थी।
उदाहरण:- मदुरई का मीनाक्षी मंदिर।

वेसर शैली क्या है  :-

सातवीं शताब्दी ईस्वी के मध्य चालुक्य शासकों ने मंदिर निर्माण की शुरुआत की जिसे कर्नाटक शैली के नाम से जाना जाता है।
बेसर शैली एक मिश्रित शैली है जिसमें नागर और धर्म दोनों सहेलियों की विशेषताएं सम्मिलित है 
इनकी विशेषताएं निम्न प्रकार हैं।
इस शैली में विमान और मंडप को अधिक महत्व दिया गया।
इसमें खुले परिक्रमा मार्ग यानी प्रदक्षिणा पथ थे।
खंभों दरवाजों छात्रों को बहुत बारीक नक्काशी द्वारा सजाया गया था।
वे सर शैली में मंदिर निर्माण के लिए तीन प्रमुख राजवंश थे। बादामी और कल्याण के चालुक्य,राष्ट्रकूट,होयसल वंश आदि
नागर शैली का प्रभाव बेसर शैली के मंदिर में वक्र रेखा शिखर और वर्गाकार आधार में दिखाई पड़ता है।
द्रविड़ शैली का प्रभाव जटिल बारीक नक्काशी और मूर्तियों,विमानों के डिजाइन और मंदिरों के सीढ़ीदार सीखर में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।
उदाहरण: दंबल का दौडुबसप्प मंदिर, एलोरा का लाडखाना मंदिर,बादामी के मंदिर आदि।

विजय नगर शैली क्या है :-

विजयनगर साम्राज्य के शासक कला और वास्तुकला के महान संरक्षक थे। विजयनगर साम्राज्य के शासक ने चोल, होंयसाल,पांडय,चालूक्य सभी की स्थापत्य शैली की विशेषताओं को एक साथ समायोजित किया। इनकी स्थापत्य शैली पर हिंद इस्लामी शैली के प्रभाव पड़ने लगे थे।
इन मंदिरों की विशेषताएं निम्न प्रकार थी।
नक्काशीदार और जयमिति पैटर्न से मंदिर की दीवारें अधिक अलंकृत है।
जो प्रवेश द्वार पहले सामने होता था किंतु अब सभी दिशा में बनाए जाने लगे थे।
स्तंभ एक ही पत्थर को काटकर बनाया जाता था।
सलंग्न दीवारें बड़ी थी।
प्रत्येक मंदिर में एक से अधिक मंडलों का निर्माण किया गया था और केंद्रीय मंडप में कल्याण मंडप के रूप में उपयोग होने लगा था जिसमें दिव्य विवाह समारोह होता था।
इस शैली के अंतर्गत मंदिर परिसर में धर्मनिरपेक्ष भवनों की अवधारणाएं विख्यात थी।
मंदिर चारदीवारी से घिरा हुआ रहता थ।
उदाहरण : हंपी स्थित विट्ठल स्वामी मंदिर, हंपी में विरुपाक्ष मंदिर ।


धन्यवाद आपका।

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