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भू-चुंबकत्व के मूलभूत सिद्धांत geomagnatic fundamentals


भू-चुंबकत्व के मूलभूत सिद्धांत

सामान्य परिचय


सौरमंडल के कुछ अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी का भी अपना चुंबकत्व है, जिसे भूचुंबकत्व कहा जाता है। 
प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक थेल्स को चुम्बक का ज्ञान था, लेकिन ग्रीस के निवासियों को चुम्बक की दिशा जानने का ज्ञान नहीं था। लगभग 2000 साल पहले चीन के निवासियों ने दिशा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक चुंबकीय कंपास बनाया था। लेकिन पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का ज्ञान 1600 ईसा पूर्व का है। इसी वर्ष इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ के चिकित्सक विलियम गिल्बर्ट ने अपनी पुस्तक डी मैग्नेट में समझाया कि पृथ्वी एक विशाल चुंबक की तरह व्यवहार करती है। गिल्बर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि भू-चुंबकत्व एक चुंबकीय क्षेत्र की तरह है और यह पृथ्वी के आंतरिक भाग से उत्पन्न होता है। सन् 1839 में गॉस ने भू-चुंबकत्व के इस मूलभूत सिद्धांत को सिद्ध किया कि, अधिकांश भू-चुंबक पृथ्वी के आंतरिक भाग में पैदा होते हैं
आधुनिक गणना के अनुसार, भू-चुंबक का 95 प्रतिशत भाग पृथ्वी के द्विध्रुवीय चुंबक से प्राप्त होता है। पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र एक बार मैगनेट की तरह है, जिसमें दो द्विध्रुव होते हैं। इन ध्रुवों को क्रमशः उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव कहा जाता है। पृथ्वी का द्विध्रुव चुम्बक पृथ्वी के केंद्र में स्थित है।
यह पृथ्वी के दक्षिणी चुंबकीय ध्रुव को आकर्षित करता है। इसी प्रकार पृथ्वी का उत्तरी चुंबकीय ध्रुव उस चुंबक के दक्षिणी ध्रुव को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसका कारण यह है कि जब दो चुम्बक एक-दूसरे के निकट लाए जाते हैं, तो उनके समान ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं और असमान ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं ।
चुंबकीय सुई को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि इसका उत्तरी ध्रुव पृथ्वी के उत्तर की ओर और इसका दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव की ओर हो। 
भू - चुंबकीय क्षेत्र इतना सरल नहीं होता जितना कि दिखाई देता है । इसके दो कारण हैं । प्रथम तो यह कि पृथ्वी के द्विध्रुवीय ( dipole ) चुंबक का अक्ष पृथ्वी के घूर्णन अक्ष की सीध में नहीं है बल्कि उसके साथ 11 ° 26 ' का कोण बनाता है । इसके परिणामस्वरूप भू - चुबंकीय ध्रुव पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुवों पर स्थित नहीं है । पृथ्वी के द्वि - ध्रुवीय चुबंक का अक्ष 78 ° 34 ' उत्तर व 290 ° 40 ' पूर्व तथा 78 ° 34 ' दक्षिण व 110 ° 40 ' पूर्व निर्देशांकों ( coordinates ) पर स्थित है । दूसरे पृथ्वी के द्वि - ध्रुवीय चुबंक के अतिरिक्त अन्य चुबंकीय शक्तियां भी जिससे चुंबकीय ध्रुवों की स्थिति में अंतर आ जाता है । अतः पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुवों की वास्तविक स्थिति उनकी अपेक्षित स्थिति से थोड़ी सी भिन्न है । भू - चुंबक का दक्षिणी ध्रुव उत्तरी ग्रीनलैंड में थ्यूल वेधशाला ( Thule Observatory ) के निकट 74 ° उत्तरी अक्षांश तथा 100 ° पश्चिमी देशांतर पर तथा इसका उत्तरी ध्रुव अंटार्कटिका विक्टोरिया लैंड के उत्तरी - पूर्वी किनारे पर 68 ° दक्षिणी अक्षांश तथा 145 ° पूर्वी देशांतर पर स्थित है । 
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र इसके आकार से कई गुना बड़ा होता है । परंतु इसका स्वरूप सौर पवन Solar wind ) के कारण बहुत ही विकृत हो जाता है । सौर पवन के साथ सूर्य से आने वाले आवेशित कण ( charged particles ) सूर्य के सामने आने वाले चुंबकीय क्षेत्र का संपीड़न करते हैं , जबकि सूर्य दूसरी ओर इसका वर्धन कर देते हैं । अतः भू - चुंबकीय क्षेत्र अंतरिक्ष में सीमित क्षेत्र पर ही विस्तृत होता है , जिसे भू - चुंबकीय मंडल ( Magnetosphere ) कहते हैं । भू - चुंबकीय मंडल का विस्तार सूर्य की ओर पृथ्वी के RADIUS से दस गुना तथा सूर्य के दूसरी ओर पृथ्वी के RADIUS से 60 गुना अधिक होता है ।
वायुमंडल के ऊपरी भाग में सौर विकिरण से आवेशित कणों ( charged particles ) के लिए चुंबकीय ट्रेप ( traps ) बन जाते हैं । इस प्रकार कॉसमिक ( cosmic ) विकिरण के क्षेत्रों अथवा पेटियों का निर्माण होता है । इन ध्रुवीय क्षेत्रों में चुंबकीय हलचल पैदा होती है । इनमें से वायुमंडल में 100-150 किमी . ऊंचाई गैसों के चमकने से ध्रुवीय ज्योति ( Polar aurora ) प्रमुख है । वायुमंडल ( अयनमंडल ) में ध्रुवीय क्षेत्रों में बहु - रंगीन प्रकाश को ध्रुवीय ज्योति कहते हैं । उत्तरी ध्रुवीय ज्योति को अरोरा बोरियलिस ( Arora borlealis ) तथा दक्षिणी ध्रुवीय ज्योति को अरोरा आस्ट्रेलिस ( Arora Austra lis ) कहते हैं
जैसा कि पहले बताया गया है कि पृथ्वी का चुंबकीय अक्ष इसके घूर्णन अक्ष के साथ मेल नहीं खाता बल्कि इसके साथ एक निश्चित कोण बनाता है । पृथ्वी के चुंबकीय अक्ष तथा घूर्णन अक्ष के बीच बने कोण को चुंबकीय दिकूपात ( Magnetic declixation) कहते हैं । इस प्रकार किसी स्थान पर स्वतंत्र रूप से निलम्बित चुंबकीय सुई की दिशा तथा पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के बीच का कोणीय झुकाव के चुंबकीय दिकूपात को दर्शाता है । पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुव , चुंबकीय ध्रुव तथा चुंबकीय सुई की स्थिति के अनुसार चुंबकीय दिकूपात पश्चिमी अथवा पूर्वी हो सकता है।  इसके विपरीत ' ख ' स्थान पर चुंबकीय ध्रुव , भौगोलिक ध्रुव के पूर्व है और यहां पर चुंबकीय सूई इस स्थान से गुजरने वाले देशांतर के पूर्व में है । अतः यहां पर चुंबकीय दिकूपात पूर्व की ओर है । 
यदि स्वतंत्र रूप से किसी चुंबकीय सूई को निलम्बित किया जाए तो निलम्बित सूई तथा पृथ्वी के क्षैतिज तल के बीच बने कोण को चुंबकीय झुकाव ( Magnetic declination ) अथवा चुंबकीय नति ( Magnetic dip ) कहते हैं । चुंबकीय झुकाव चुंबकीय सूई की स्थिति पर निर्भर करता है । उत्तरी गोलार्द्ध में यदि उत्तरी ध्रुव पर चुंबकीय सूई को स्वतंत्र रूप से निलम्बित किया जाए तो उसका उत्तरी ध्रुव पृथ्वी के चुंबकीय दक्षिण ध्रुव के पास होगा और चुंबकीय सूई लम्बवत् दिशा में व्यवस्थित हो जाएगी और चुंबकीय सूई का उत्तरी ध्रुव नीचे की ओर इंगित होगा । दक्षिणी ध्रुव में स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत होगी । यहां पर चुंबकीय सूई का दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी के चुंबकीय उत्तरी ध्रुव के निकट होगा और चुंबकीय नति 90 ° की होगी । भूमध्य रेखा के निकट चुंबकीय सूई लगभग क्षैतिज दिशा में होगी और वहां पर चुंबकीय नति शून्य होगी। शून्य चुंबकीय नति वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को चुंबकीय निरक्ष ( Magnetic equator ) कहते हैं ।

भू - चुंबकीय अक्षांश 
किसी निश्चित समय तथा निश्चित स्थान पर प्राचीन लावा के अवशेष चुंबकत्व की गणना की जाए तो वहां का भूचुंबकीय अक्षांश ज्ञात किया जा सकता है । यह गणन इस अवधारणा पर आश्रित है कि उस समय के भूचुंबकीय क्षेत्र का आकार द्विध्रुवीय होगा और चुंबकीय ध्रुव एवं भौगोलिक ध्रुव एक - दूसरे के निकट होंगे।

भू - चुंबकीय परिवर्तनशील है । 
स्मरणीय है कि पृथ्वी के सामान्य द्वि - ध्रुव चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता ( Intensity of simple dipole magnetic field ) के साथ - साथ चुंबकीय झुकाव ( Magnetic decliration ) में स्थानिक एवं कालिक ( spatial and temporal ) परिवर्तन आते ही रहते हैं लम्बी अवधि ( 10 से 100 वर्ष ) में भूचुंबकीय घटकों ( चुंबकीय दिकूपात तथा चुंबकीय झुकाव अथवा नति में उल्लेखनीय परिवर्तन होते हैं लन्दन तथा पैरिस में की गई गणनाओं से विदित हुआ है कि पिछले 350 वर्षों में चुंबकीय दिकूपात में 30 ° तथा चुंबकीय झुकाव अथवा नति ) में 10 ° का अंतर आया है 
40 लंदन में 1576 से 1913 तक तथा पैरिस में 1617 से 1974 तक चुंबकीय दिकूपात तथा चुंबकीय नति में परिवर्तन दर्शाया गया भू - चुंबकीय गणनाओं के आधार पर यह ज्ञात हुआ कि भूचुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता ( intensity ) निरंतर और तेजी से परिवर्तित होती है । लंदन में पिछले एक सौ वर्षों में भूचुंबकीय तीव्रता में प्रतिशत का द्वास हुआ , परंतु पिछले कुछ वर्षों में भूचुंबकीय तीव्रता में वृद्धि होने के संकेत मिले हैं । केप टाउन में वर्तमान की अपेक्षा पिछले एक सौ वर्षों में भू - चुंबकीय तीव्रता में तीन गुना अधिक वृद्धि हुई । पिछले कई वर्षों में की गई गणनाओं के आधार पर भू - चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता के घटकों में अंतर को मापना संभव हो पाया है लंबी अवधि के अतिरिक्त इन घटकों में दैनिक परिवर्तन भी पाए जाते हैं । चित्र 1.41 से स्पष्ट होता है कि ये परिवर्तन सूर्य द्वारा पृथ्वी को प्रकाशित करने की मात्रा में परिवर्तन आने से पैदा होते हैं ।
चूम्बकीय क्षेत्र में लंबी अवधि के परिवर्तन सौर प्रदीप्ति ( solar ) flare ) के कारण होते हैं । सौर प्रदीप्ति से वायुमंडल की आयत परत ( ionosphere ) में परिवर्तन होता है जिससे विद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर परिवर्तन होते हैं । इन का संबंध ध्रुवीय ज्योति ( aurora ) से होता है और इन से लघु वरंगीय रेडियो संचार short wave radio communications ) में कमी अथवा अवरोध पैदा हो जाता है । इन्हें चुंबकीय तूफान अथवा झंझावात ( mag netic storm ) कहते हैं । चुंबकीय झंझावात के समय ध्रुवीय दीप्ति भूकम्प रेखा की ओर विस्थापित हो जाता है । लंबी अवधि ( सैकड़ों वर्ष ) में भूचुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन होते हैं । गणनाओं से यह विदित हुआ है कि चुंबकीय विसंगति सामान्य चुंबकीय क्षेत्र की गणितीय गणना पर आधारित शक्ति तथा मेग्नेटोमीटर द्वारा अंकित चुंबकीय क्षेत्र को शक्ति के अंदर को चुंबकीय विसंगति कहते हैं । अक्षांशीय दिशा में पश्चिम को ओर विस्थापित होती है । इसे पश्चिमी विस्थापन ( Western drift ) कहते हैं । यह विस्थापन 0.18 ° प्रतिवर्ष की दर से हो रहा है । इस गति से विसंगतियों का वितरण 1800 वर्षों में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेगा विद्वानों का विचार है कि पश्चिमी विस्थापन पृथ्वी के आंतरिक भाग में होने वाली हलचलों के कारण होता है और बाह्य कारकों का योग बहुत कम है । अनुमान है कि सूर्य सहित बाह्य स्रोतों से कुल 6 प्रतिशत भूचुंबकीय क्षेत्र का निर्माण होता है और बाकी 94 प्रतिशत भुचुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के आंतरिक स्रोतों से बनता है । बड़ी विसंगतियों के अतिरिक्त स्थानीय विसंगतियां भी होती हैं । ये उन स्थानों पर अधिक होती जहां पर लोहे जैसे चुंबकीय गुण वाले खनिज पाए जाते हैं । कुरसक की चुंबकीय विसंगति ( Kursk Magnetic Anomaly ) इसका ज्वलंत उदाहरण है ।

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