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पृथ्वी की आंतरिक प्राकृतिक दशाएं ( Physical Conditions of the Earth's Interior)

परिचय

हम पृथ्वी अन्दर अधिक गहराई तक जाकर स्वयं अपनी आंखों से नहीं देख सकते । विश्व की सबसे अधिक गहरी खान दक्षिणी अफ्रीका की सोने की एक खदान है, जिसकी गहराई मात्र 4.8 किमी है। है । आधुनिक उपकरणों से खनिज तेल प्राप्त करने के लिए खोदे गए कुएँ भी 10 या 12 किमी के हैं। यह पृथ्वी की सतह से केंद्र तक 6371 किमी की गहराई की तुलना में नगण्य है इसलिए पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में हमारा प्रत्यक्ष ज्ञान बहुत सीमित है।
हम इसे अप्रत्यक्ष रूप से ही प्राप्त कर सकते हैं। यही कारण है कि इस विषय पर वैज्ञानिकों के बीच भारी मतभेद हैं। आम तौर पर पृथ्वी को चार संकेंद्रित परतों में विभाजित किया जा सकता है,
सबसे ऊपरी परत को पृथ्वी की भू पृष्ठ, पृथ्वी की भूपटल या भूपर्पटी कहा जाता है। इसकी औसत गहराई 33 किमी है। है । यह विभिन्न चट्टानों से बना पृथ्वी का एक ठोस हिस्सा है।
2900 की गहराई तक एक दूसरी परत होती है जिसे मेंटल कहते हैं। फिर तीसरी परत आता है जिसे आउटर कोर कहते हैं।  यह 2900 किमी से 5120 किलोमीटर की गहराई तक फैली हुई है इस प्रकार इसकी मोटाई 2220 किमी है। 5120 किमी.  पृथ्वी के केंद्र की गहराई से 6371 किमी की गहराई तक आंतरिक भू-भाग है।  पृथ्वी की आंतरिक संरचना के संबंध में हमारे पास जो भी ज्ञान उपलब्ध है,
उसे हम दो भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं:
अ.अप्राकृतिक साधन ( Artificial Sources )
 1.घनत्व ( Density )
2.दबाव ( Pressure )
3.तापमान
( Temperature ) 
ब.प्राकृतिक साधन ( Natural Sources )
1.ज्वालामुखी उद्गार ( Volcanic Eruption )
2.भूकम्प विज्ञान ( Seismology )

अ.अप्राकृतिक साधन ( Artificial Sources )

 1.घनत्व ( Density )

पृथ्वी के भू - पटल का अधिकांश भाग अवसादी चट्टानों से हुई है । इसका औसत घनत्व 2.7 है । इसके चट्टानें जिनका घनत्व 3 या 3.5 है । आग्नेय चट्टानें कहीं - कहीं - पटल के ऊपर निकल आई हैं ।पृथ्वी के आन्तरिक भागों में घनत्व अधिक है । लगभग 400 किमी . की गहराई तक घनत्व 3.5 तक ही रहता है और 2900 किमी . की गहराई पर घनत्व 5.6 तक पहुँच जाता है । यहाँ पर पृथ्वी के क्रोड ( Core ) की सीमा शुरू होती है । इस सीमा पर पहुँच कर घनत्व एकदम बढ़ता है और 9.7 तक पहुँच जाता । इसके बाद घनत्व एक समान गति से बढ़ता है और पृथ्वी के केन्द्र पर 11 से 12 तक बढ़ता जाता है ।
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में इतना अधिक घनत्व होने के सम्बन्ध में दो मत प्रस्तुत किए गए हैं ।
पहले मत के अनुसार आन्तरिक भाग में स्थित चट्टानों द्वारा दबाव पड़ता है ,जिससे वहाँ पर घनत्व अधिक हो जाता है । परन्तु प्रयोगशाला में शैलों पर दबाव बढ़ाकर उनका घनत्व बढ़ाने के प्रयास असफल रहे हैं । इससे यह सिद्ध होता है कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में घनत्व की अधिकता बाह्य दबाव के कारण नहीं है ।
दूसरे मत के अनुसार पृथ्वी का क्रोड ऐसी चट्टानों का बना हुआ है जिनका घनत्व अधिक है । अतः विद्वान् इस सम्बन्ध में लगभग एकमत हैं कि पृथ्वी का आन्तरिक भाग भारी पदार्थों का बना हुआ है । पृथ्वी का क्रोड मुख्यतः लोहा तथा निकिल का बना हुआ माना जाता है क्योंकि इन्हीं पदार्थों का घनत्व इतना अधिक है ।
 इस मत के पक्ष में विद्वानों द्वारा दो प्रमाण दिए गए
( i ) पृथ्वी एक महान् चुम्बक ( Magnet ) की भाँति व्यवहार करती है जिस कारण पृथ्वी के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र है । इससे यह सिद्ध होता है कि पृथ्वी का आन्तरिक भाग चुम्बकीय धातु लोहा तथा निकिल द्वारा ही निर्मित होना चाहिए।
ii ) अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर गिरने वाली उल्काओं (Meteors)के अध्ययन से यह पता चलता है कि उनके निर्माण लोहे तथा निकिल जैसे भारी पदार्थों की ही प्रधानता है।

2.दबाव ( Pressure )

भाग में किसी स्थान पर एक वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्रफल पर पड़ने वाले भार को दबाव कहते हैं । यह दवाव उस क्षेत्र के ऊपर स्थित चट्टानों के भार से उत्पन्न होता है । भू - पटल के आधार पर ( अर्थात् 50 किमी . की गहराई पर ) यह स्थल की अपेक्षा 13,000 गुना होता है ।
50 किमी . की गहराई पर 13,000 गुना वायुमण्डलीय दबाव होता है 
यह भार क्रोड की सीमा ( 2900 किमी गहराई ) पर 13,00,000 तथा पृथ्वी के केन्द्र पर 35,00,000 से 40,00,000 वायुमण्डलीय भार होता है 


3.तापमान( Temperature ) 

सामान्यतः पृथ्वी के भीतरी भागों में जाने से तापमान में वृद्धि होती है। अनुमान है कि 32 मीटर की गहराई पर तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। गहराई पर तापमान 1200 से 1800 डिग्री सेल्सियस और कोर पर 2,00,000 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। लेकिन परीक्षण बताते हैं कि यह सच नहीं है। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि तापमान में वृद्धि की दर गहराई के साथ घटती जाती है। जमीन से 100 किमी. 2 डिग्री सेल्सियस प्रति किमी तक। और उससे नीचे 1 डिग्री सेल्सियस प्रति किमी। तापमान में वृद्धि की दर। इस गणना के अनुसार धात्विक कोर का तापमान 2,000 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
पृथ्वी के आंतरिक भाग का तापमान इतना अधिक है कि उस तापमान पर कोई भी वस्तु ठोस या कठोर अवस्था में नहीं रह सकती है। इसलिए पृथ्वी का आंतरिक भाग द्रव या गैस की अवस्था में होना चाहिए। लेकिन पृथ्वी के अंदर जाने से दबाव बढ़ता है और दबाव बढ़ने से वस्तुओं का गलनांक भी बढ़ जाता है।
इसलिए आंतरिक भाग ठोस अवस्था में होना चाहिए। प्रयोगों ने साबित कर दिया है कि प्रत्येक पदार्थ के लिए एक महत्वपूर्ण तापमान होता है। यदि तापमान क्रांतिक तापमान से अधिक हो जाता है, तो कितना भी दबाव बढ़ा दिया जाए, वस्तु ठोस अवस्था में नहीं रह सकती है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि पृथ्वी का आंतरिक भाग द्रव या गैस की अवस्था में है।
उपरोक्त विवरण से निम्नलिखित बातें ज्ञात होती हैं 
(i) पृथ्वी एक ठोस की तरह व्यवहार करती है। 
 (ii) अनुकूल परिस्थितियों में ऊपरी पत्तियाँ तरल की तरह होती हैं। 
 (iii) जब पृथ्वी के ऊपरी भागों में दाब कम हो जाता है,तो निचला पदार्थ द्रव में बदल जाता है। ज्वालामुखी का पिघला हुआ लावा ।

ब.प्राकृतिक साधन ( Natural Sources)


1.ज्वालामुखी उद्गार ( Volcanic Eruption )

ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान पृथ्वी के भीतरी भाग से बड़ी मात्रा में लावा निकलता है और सतह पर फैल जाता है। कभी-कभी यह लावा सतह पर नहीं आ पाता और केवल पृथ्वी की सतह की दरारों में ही जम जाता है। ज्वालामुखी से निकलने वाला तरल लावा हमें यह विश्वास करने के लिए मजबूर करता है कि पृथ्वी का कुछ हिस्सा तरल अवस्था में होना चाहिए। अधिकांश ज्वालामुखियों का स्रोत 40 से 50 किमी. गहराई पर है। 
 विद्वानों का मत है कि इस गहराई पर द्रव अवस्था में बड़ी मात्रा में मैग्मा मौजूद होता है। इसे मैग्मा चैंबर कहा जाता है। इसके आधार पर वैज्ञानिक पृथ्वी के इस भाग को तरल अवस्था में मानते हैं, लेकिन इसके विपरीत कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि इतनी गहराई पर अत्यधिक दबाव के कारण चट्टानें पिघली हुई अवस्था में नहीं रह सकतीं क्योंकि दाब के कारण उनका गलनांक उच्च हो जाता है। यह संभव है कि पृथ्वी की सतह में दरारें आने के कारण भीतरी चट्टानों पर दबाव कम हो जाता है, जिससे उनका गलनांक कम हो जाता है। नतीजतन, आंतरिक चट्टानें पिघल जाती हैं और ज्वालामुखी विस्फोट के रूप में बाहर आ जाती हैं। इस प्रकार ज्वालामुखी विस्फोट भी हमें पृथ्वी के आंतरिक भाग के बारे में निश्चित जानकारी नहीं दे पाते हैं।

2.भूकम्प विज्ञान ( Seismology )

बीसवीं शताब्दी की शुरुआत से लेकर आज तक भूकम्प विज्ञान ने हमें पृथ्वी की आंतरिक स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी है। भूकम्प के आने से पृथ्वी में कम्पन उत्पन्न होते हैं, जिससे भूकम्पीय तरंगें उत्पन्न होती हैं।
 इन तरंगों का अध्ययन सिस्मोग्राफ या सीस्मोग्राफ नामक एक विशेष उपकरण की सहायता से किया जाता है। वह स्थान जहाँ से भूकंप शुरू होता है, भूकंप की उत्पत्ति का केंद्र या भूकंपीय फोकस कहलाता है। यह जमीनी स्तर से नीचे पर्याप्त गहराई पर होता है। भूकंप का केंद्र भूकंप की उत्पत्ति के ठीक ऊपर जमीन पर होता है, जहां भूकंपीय तरंगों का ज्ञान सबसे पहले होता है। इस स्थान को भूकंप केंद्र या उपरिकेंद्र कहा जाता है।
किसी भूकंप के आने से भूकंप के फोकस से विभिन्न प्रकार की लहरें उत्पन्न होती हैं इन लहरों को तीन भागों में बांटा जा सकता है जो निम्न प्रकार है।
1.प्राथमिक लहरे
2.द्वितीयक लहरे
3.ऊपरी परत की लहरें

1.प्राथमिक लहरे (p Waves) 

प्राथमिक लहरें तीव्र गति से चलने वाली लहरें हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुंचती हैं इन्हें P- लहरें भी कहते हैं। तथा इन्हें अनुदैर्ध्य लहरें अथवा संपीड़ित लहरें भी कहते हैं। यह लहरें ध्वनि के समान होती हैं जो गैस तरल ठोस तीनों प्रकार के पदार्थों से गुजर सकती हैं

2.द्वितीयक लहरे (S Waves)

यह तरंगे धरातल पर कुछ समय अंतराल के बाद पहुंचती हैं। इन्हें S लहरें कहते हैं। यस लहरें केवल ठोस पदार्थों में ही विचरण करती है। और इन तरंगों को अनुप्रस्थ तरंग भी कहते हैं। इन लहरों की तुलना प्रकाशन की लहर से की जाती है। यह लहर पृथ्वी के मध्य से भी गुजर नहीं पाती है।

3.ऊपरी परत की लहरें (Upper body )

इन तरंगों को लंबी तरंगे भी कहते हैं यह कम आवृत वाली दीर्घ तरंग दर्द की मानी जाती हैं और यह अधिकेंद्र के निकट विकसित होती हैं। गति धीमी होने के कारण इन तरंगों को भूकंप मापक *सिस्मोग्राफ* पर सबसे अंत में रिकॉर्ड किया जाता है पृथ्वी के धरातल पर अधिकतर जान व माल का नुकसान इन्हीं लहरों के द्वारा होता है यह बहुत विनाशकारी हो सकती हैं।
भूकंप की लहरों के पृथ्वी के अंदरूनी भाग में व्यवहार से पता चलता है कि पृथ्वी के निम्नलिखित परते हैं।
1.आंतरिक ठोस भाग
2.बाह्य तरल कोर
3.मेंटल
4.ठोस भूपटल
यदि पृथ्वी की आंतरिक संरचना एक समान होती तो भूकंप लहरें इसमें समान गति से चलती परंतु इन लहरों में असमानता देखी गई जिससे यह पता चलता है कि कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना भिन्न-भिन्न है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना में छाया क्षेत्र अभी उपस्थित होता है जिससे द्वितीयक लहरी पार नहीं कर पाती है। और इन परतो का घनत्व अलग अलग है जिससे भूकंप की लहरें वक्राकार चलती हैं।


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