भारतीय राज्य व्यवस्था में राज्य मंत्री परिषद क्या है ?
भारतीय संविधान में केंद्र की तरह ही राज्य में भी संसदीय व्यवस्था का प्रबंध है। राज्य की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था का वास्तविक कार्यकारी प्रमुख मंत्रिपरिषद का मुखिया यानी मुख्यमंत्री होता है।
A.राज्य मंत्री परिषद के संवैधानिक प्रावधान क्या है?
राज्य के मंत्री परिषद के संवैधानिक प्रावधानों को संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेदों से जाना जा सकता है।
अनुच्छेद 163 - राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद।
इस अनुच्छेद के तहत संविधान में यह प्रावधान है कि राज्यपाल के अपने विवेकाधिकार अनुसार किए गए फैसले के अतिरिक्त सभी कार्यों को क्रियान्वित करने के लिए राज्यपाल को मंत्री परिषद से सहायता व सलाह लेनी होगी, मंत्री परिषद का प्रधान मुख्यमंत्री होता है
इस प्रकार के प्रश्न पर न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी की मंत्रियों द्वारा राजपाल कोई सलाह दी गई तो क्यों देगी।
अनुच्छेद 164 - मंत्रियों संबंधी अन्य उपबंध।
1.राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की नियुक्ति की जाएगी तथा अन्य मंत्रियों की भी नियुक्ति मुख्यमंत्री के सलाहकार राज्यपाल द्वारा की जाती है इसके अतिरिक्त कुछ अन्य जनजातीय क्षेत्रों में एक अतिरिक्त जनजाति कल्याण मंत्री नियुक्त होता है।
2. किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री समेत अन्य मंत्रियों की अधिकतम संख्या उस राज्य के विधानसभा की कुल सदस्य के 15% से अधिक नहीं होगा किंतु मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 से कम नहीं होगी। इस प्रावधान को 91 संविधान संशोधन विधेयक 2003 द्वारा जोड़ा गया है।
3. 91 संविधान संशोधन विधेयक 2003 द्वारा ही राज्य विधानमंडल के किसी भी सदस्य का दल बदल के आधार पर पद रिक्त होने पर मंत्री अगर वह सदस्य है तो वह भी पद रिक्त होगा।
4. राज्य मंत्री परिषद के मंत्री राज्यपाल के अधिक पर धारण करते हैं।
5. राज्य मंत्री परिषद सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदाई होता है
6. राज्य के सभी मंत्रियों एवं मुख्यमंत्री को राज्यपाल पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाता है
7. यदि कोई व्यक्ति विधान का सदस्य नहीं है तो उसे अगर मंत्री नियुक्त किया हुआ है तो 6 माह के भीतर उसे किसी सदन का सदस्य होना आवश्यक है
8. राज्य मंत्री परिषद के सभी मंत्रियों के वेतन भत्ते और सुविधाएं राज्य विधान मंडल द्वारा निर्धारित की जाती है।
अनुच्छेद 166 -राज्यपाल द्वारा कार्यवाही का संचालन।
1.राज्य के समस्त कार्यवाही का संचालन राजपाल के नाम से ही किया जाता है
2. राज्य सरकार की कार्यवाहीओं को सुगम बनाने के लिए तथा मंत्रियों के बीच कार्यों के आवंटन के लिए नियम राज्यपाल द्वारा बनाए जाएंगे।
अनुच्छेद 167 -मुख्यमंत्री के कर्तव्य।
1. मुख्यमंत्री राज्य के प्रशासन से संबंधित तमाम मामलों तथा निर्णय कि प्रस्ताव के बारे में राज्यपाल को सूचित करेगा।
2. मंत्रिपरिषद में किसी मंत्री द्वारा लाए निर्णय पर कार्रवाई ना होने पर राज्यपाल मुख्यमंत्री को मंत्रिपरिषद में विचार करने के लिए कह सकते हैं।
अनुच्छेद 177-मंत्रियों के अधिकार सदनों के संबंध में।
मंत्रिपरिषद के प्रत्येक मंत्री को विधानमंडल में भाग लेने की और बोलने का अधिकार होगा। और राज्य विधायिका की समिति के लिए भी यही नियम लागू होता है पर उसे मत देने का अधिकार नहीं होगा।
B.राज्य मंत्रिपरिषद में मंत्रियों द्वारा दिए गए परामर्श की प्रकृति कैसी होती है?
अनुच्छेद 163 के अनुसार यह प्रावधान है कि मुख्यमंत्री और मंत्री अर्थात मंत्री परिषद द्वारा राज्यपाल को सलाह और सहायता प्रदान की जाएगी किंतु किसी न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी की मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी और क्यों दी और क्या दी।
1971 में उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि राज्यपाल को परामर्श देने के लिए मंत्रिपरिषद हमेशा रहेगी। किंतु 1974 में दोबारा न्यायालय ने यह स्पष्ट किया की राज्यपाल के निर्णय या कार्यक्षेत्र या सलाह एवं अनुदान आदि मंत्री परिषद के कार्य एवं शक्ति के आधार पर होगा।
C.राज्य मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की नियुक्ति कैसे होती है?
राज्य में मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी। तथा राज्यपाल अन्य मंत्रियों को मुख्यमंत्री के परामर्श पर नियुक्त करता है।
कुछ विशेष राज्य में जैसे छत्तीसगढ़ झारखंड मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा में एक जनजाति मंत्री भी होना चाहिए जो राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है * प्रारंभ में या उपबंध केवल बिहार मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा के लिए था। लेकिन संविधान संशोधन 94 अधिनियम 2006 द्वारा बिहार राज्य को मुक्त कर दिया गया क्योंकि बिहार में जनजातीय की संख्या काफी कम है।
मंत्री परिषद में बतौर मंत्री किसी भी व्यक्ति को नियुक्त किया जा सकता है चाहे वह विधान सभा का सदस्य हो या ना हो कोई व्यक्ति जब विधानमंडल का सदस्य नहीं होता तो उसे मंत्री नियुक्त होने के 6 माह के भीतर विधानमंडल की सदस्यता लेना अनिवार्य होता है चाहे निर्वाचन द्वारा व राज्यपाल के मनोनीत शक्ति के द्वारा।
D.राज्य मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की शपथ एवं वेतन भत्ते क्या होते हैं?
राज्य मंत्रिपरिषद के मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राज्य के राज्यपाल दिलाते हैं।
मंत्री संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा सत्य निष्ठा भारत के प्रवक्ता अखंडता अपने कर्तव्य को श्रद्धा पूर्वक और शुद्ध अंतः करण से निर्वहन करने की शपथ लेता है।
गोपनीयता के संबंध में मंत्री विश्वास दिलाता है कि जो विषय राज्य के मंत्री के रूप में उसे ज्ञात है उसे ऐसे किसी व्यक्ति को शिवाय जबकि उसे ऐसे मंत्री के रूप में अपने कार्य करते व्यक्ति निर्वाहन के लिए अपेक्षित ,हो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सूचना को प्रकट नहीं करेंगे।
मंत्री के वेतन और भत्तों और राज्य विधानमंडल समय-समय पर तय करता है। एक मंत्री राज्य विधान मंडल के सदस्यों को मिलने वाले वेतन के बराबर ही वेतन एवं भत्ता ग्रहण करता है इसके अतिरिक्त मंत्री पद के अनुरूप निशुल्क निवास यात्रा भत्ता चिकित्सा भत्ता वितरण करता है।
E.राज्य मंत्रिपरिषद में मंत्रियों के उत्तर दायित्व क्या होते है
सामूहिक उत्तरदायित्व:- इसका क्या अभिप्राय है कि कैबिनेट के फैसले के प्रति सभी मंत्री प्रतिबद्ध हैं चाहे वे कैबिनेट बैठक से अलग हो। यदि कोई मंत्री कैबिनेट के फैसले से संतुष्ट नहीं है तो वह त्यागपत्र दे देता है ऐसा कई बार देखा जा चुका है।
अनुच्छेद 164 के अनुसार राज्य विधानसभा के प्रति मंत्रिपरिषद का सामूहिक उत्तरदायित्व होगा। यदि विधानसभा मंत्रिपरिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर देता है तो प्रत्येक मंत्री को चाहे वह जिस सदन का हो त्यागपत्र देना पड़ता है। एक बार विश्वास खो देने पर राज्यपाल उस मंत्रिपरिषद के पक्ष में कुछ भी नहीं कर सकते।
व्यक्तिगत उत्तरदायित्व:- अनुच्छेद 164 में व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के सिद्धांतों को भी दर्शाया गया है मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यत पद धारण करते हैं इसलिए राज्यपाल मुख्यमंत्री के सलाह पर किसी भी मंत्री को मतभेद व संतुष्टि के कारण त्यागपत्र मांग सकते हैं या बर्खास्त कर सकते हैं।
भारतीय संविधान में विधिक जिम्मेदारी राज्यों के मंत्री के लिए भी केंद्र मंत्रियों की भांति विधिक नहीं है।
F.राज्य मंत्रिपरिषद का गठन कैसे होता है?
मुख्यमंत्री समय और परिस्थिति के हिसाब से मंत्रिपरिषद का निर्धारण करता है। राज्य मंत्रिपरिषद केंद्र कितना 3 वर्ग कैबिनेट, राज्य एवं उप मंत्री होते हैं। इन सभी मंत्रियों के ऊपर मुख्यमंत्री राज्य में सर्वोच्च शासकीय प्राधिकारी होते हैं।
राज्य मंत्रियों को या तो स्वतंत्र प्रभार दिया जा सकता है या उन्हें कैबिनेट के साथ संबंध किया जा सकता है राज्य मंत्री कैबिनेट में भाग नहीं लेते हैं जब तक उन्हें विशेष तौर पर बुलाया ना जाए क्योंकि यह कैबिनेट के भाग नहीं होते हैं। पद के आधार पर उपमंत्री इसके बाद होते हैं उप मंत्री को स्वतंत्र प्रभार नहीं दिया जाता इन्हें भी कैबिनेट मंत्रियों के साथ संबं किया जाता है यह भी कैबिनेट के सदस्य नहीं होते हैं। कई बार उप मुख्यमंत्री को भी मंत्रिपरिषद में राजनीतिक कारणों से शामिल किया गया है।
G.राज्य मंत्रिपरिषद में कैबिनेट क्या होता है?
मंत्री परिषद का एक छोटा सा मुख्य भाग कैबिनेट या मंत्रिमंडल कहलाता है। इसमें केवल कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं राज सरकार में यही वास्तविक कार्यकारिणी का केंद्र होता है इसके अनेक कार्य होते हैं।
राज्य की राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्था में सर्वोच्च नीति निर्धारक।
राज्य सरकार की मुख्य नीति निर्धारक अंग।
राज्य सरकार की मुख्य कार्यकारी अधिकारी।
राज्यपाल के सलाहकार।
मुख्य आपदा प्रबंधक।
प्रमुख वैधानिक और वित्तीय मामलों को देखना।
उच्च नियुक्तियां करना जैसे संवैधानिक प्राधिकारी और वरिष्ठ प्रशासनिक सचिव को।
कैबिनेट विभिन्न प्रकार की समितियों के माध्यम से कार्य करती है जिन्हें कैबिनेट समिति कहा जाता है। यह स्थाई एवं अल्पकालिक होती हैं परिस्थितियों आवश्यकताओं के अनुसार मुख्यमंत्री इनका गठन करता है इनकी संख्या संरचना समय-समय पर अलग होती है
कैबिनेट समिति केवल मुद्दों का समाधान ही नहीं करती बल्कि कैबिनेट के सामने सुझाव भी रखती है और निर्णय भी लेती है किंतु कैबिनेट इन के फैसलों की समीक्षा कर सकती है।
राज्य मंत्री परिषद से संबंधित अनुच्छेद
अनुच्छेद 163 -मंत्रिपरिषद द्वारा राज्यपाल को सलाह एवं सहायता
अनुच्छेद 164 -मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान
अनुच्छेद 166 - राज्य सरकार द्वारा कारवाई संचालन
अनुच्छेद 167 - मुख्यमंत्री का राज्यपाल को सूचना प्रदान करने का कर्त्तव्य
अनुच्छेद 177- सदनों का सम्मान करते हुए मंत्रियों के अधिकार।
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