यह ब्लॉग खोजें

मौर्योत्तर काल की कला और स्थापत्य कला क्या है ?

 

मौर्योत्तर काल की कला और स्थापत्य कला क्या है ?


  • दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के पतन फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे राजवंशों का उदय भारत में हुआ। जैसे उत्तर में शुंग, कांव, कुषाण और शक प्रमुख थे।
  • जबकि दक्षिणी और पश्चिमी भारत में सातवाहन ,इक्ष्वाकु, आभीर और वाकाटक आदि थे। 
  • और कुछ धार्मिक वंश जैसे शैव, वैष्णव और शाक्य ब्राह्मण संप्रदायों का उदय हुआ
  • इस अवधि में चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाओं और स्तूप के स्थापत्य कला जारी रहे थे।
  • लेकिन कुछ राजवंशी अपनी स्वयं की एक अलग विशेषता प्रचलित की। इस प्रकार मौर्योत्तर काल में मूर्ति कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई।

स्थापत्य कला; -

चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफा -

  • इस अवधि में चट्टानी गुफा दो प्रकार चैत्य और बिहार का विकास हुआ।
  • चैत्य कक्ष का विकास इस काल के दौरान हुआ था।
  • इनका उपयोग प्रार्थना कक्ष के रूप में होता था।
  • इन्हें मानव और पशु आकृतियों से सजाया गया था।

उदाहरण :- कर्ले का चैत्य अजंता की गुफा जिसमें 23 गुफाएं हैं 25 बिहार और 4 चैत्य।


उदयगिरि और खंडगिरि की गुफा: -

  • कलिंग राजा खारवेल के संरक्षण में प्रथम एवं द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में इसे वर्तमान भुनेश्वर के निकट बनाया गया था 
  • इस गुफा क्षेत्र में मानव निर्मित और प्राकृतिक दोनों गुफाएं हैं।
  • इसको जैन भिच्छू के निवास के लिए बनाया गया था 
  • दयगिरि में 18 और खंडगिरि में 15 गुफाएं हैं।
  • राजा खारवेल द्वारा किए गए विभिन्न सैन्य अभियानों पर प्रकाश डालने के लिए उदयगिरि की गुफा हाथी गुफा अभिलेख के नाम से जाना जाता है
  • जिस पर ब्रह्मी लिपि में लेखन किया गया है
  • यह अभिलेख जैन णमोकार मंत्र द्वारा शुरू होता है और उदयगिरि में रानी गुफा दो मंजिला गुफा है
  • इसमें कुछ सुंदर मूर्तियां स्थित है।
स्तूप ;-
  • मौर्योत्तर काल में स्तूप विशाल और अधिक अलंकृत होते गए।
  • लकड़ी और ईद के स्थान पर पत्थर का अधिक से अधिक प्रयोग शुरू ह गया।
  • शुंग राजवंश ने स्तूप को और सुंदर बनाया प्रवेश द्वारों के रूप में तोरण का निर्माण किया।
  • जिस पर ग्रीक प्रभाव के प्रमाण हैं
उदाहरण:- मध्य प्रदेश में भरहुत का स्तूप, सांची के स्तूप का तोरण आदि

मौर्यउत्तर काल की मूर्तिकला: -

इस समय काल में मूर्ति कला की तीन प्रमुख शैली गांधार, मथुरा और अमरावती शैली का विकास हुआ।

गांधार शैली-
  • गांधार शैली में भारतीय यूनानी कला का प्रभाव था।
  • इस शैली का 50 ईसा पूर्व से लेकर पांचवी तक की अवधि में विकास हुआ था।
  • इसमें नीले धूसर बलुआ पत्थर का उपयोग हुआ था और बाद में मिट्टी और प्लास्टर का उपयोग किया गया।
  • इस पर रोमन ग्रीक देवता का प्रभाव था और चित्रकला बौद्ध थी।
  • इस शैली को कुशान शासक का संरक्षण प्राप्त था।
  • यह आधुनिक कंधार क्षेत्र में विकसित हुई थी।
  • इसमें मुख्य विशेषता यह थी कि बुध को लहराते वालों के साथ अध्यात्मिक मुद्रा में दिखाया गया है।
मथुरा शैली :-

  • मथुरा शैली का विकास पहली और तीसरी शताब्दी ईसा के बीच यमुना नदी के किनारे हुआ था 
  • यह तीन और धर्म की एक कहानी और चित्रों से प्रभावित थी।
  •  यक्ष मूर्ति के नमूने पर यह आधारित है।
  • यह शैली स्वदेशी  थी।
  • इस की मूर्ति में चित्तीदार लाल बलुआ पत्थर का उपयोग होता था
  •  कुशान शासक का संरक्षण प्राप्त था
  • इसकी विशेषता यह थी कि बुद्ध को मुस्कुराते चेहरे के साथ दिखाया गया है और पद्मासन मुद्रा में हैं।
अमरावती शैली-
  • यह शैली भी स्वदेशी से ली थी
  • इसका विकास सातवाहन शासकों के समय में कृष्णा नदी के किनारे हुआ था 
  • इसमें सफेद संगमरमर का उपयोग हुआ था | 
  • यहां मुख्यता बौद्ध धर्म से प्रभावित था| 
  • इसकी मुख्य विशेषताएं थी कि इसमें मूर्तियां त्रिभंग आसन मे थी।
  • यह शैली बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं को दर्शाते थे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ