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विश्व में भूमध्य रेखीय जलवायु के विशिष्ट लक्षणों की विवेचना कीजिए । (Discuss the characteristic features of equatorial climate in the world.)

भूमध्य रेखीय जलवायु का स्थिति एवं विस्तार:-

ये प्रदेश भूमध्यरेखा के 5 ° उत्तर तथा 5 ° दक्षिण अक्षांशों के मध्य स्थित है। कहीं - कहीं इनका विस्तार 10 ° अक्षांशों तक भी मिलता है। दक्षिण अमेरिका में अमेजन बेसिन तथा कैरेबियन सागर का तटीय भाग , अफ्रीका में कांगो बेसिन तथा गिनी तट , पूर्वी मध्य अफ्रीका एवं एशिया में मलाया तथा पूर्वी द्वीपसमूह इस प्रदेश के अन्तर्गत आते हैं। 

भूमध्य रेखीय जलवायु

  • यहाँ सूर्य वर्षभर लम्बवत् चमकता है। अतः तापमान अधिक तथा समान रहते हैं। वार्षिक औसत तापक्रम 27 ° सेंग्रे रहता है। इन प्रदेशों में वार्षिक तापान्तर बहुत कम रहता है । 
  • यह केवल 3 ° सें . ग्रे . रहता है , परन्तु दैनिक तापान्तर अधिक होता है। दिन की अपेक्षा यहाँ रात्रि अधिक ठण्डी रहती हैं । इन प्रदेशों में रात्रि ही जाड़े का मौसम होता है वर्षा यहाँ वर्षभर होती है। वर्षा संवाहनीय प्रकार की होती है तथा वर्षा का वार्षिक औसत 2.50 सेमी रहता है । 
  • वर्षा नियमित रूप से दोपहर बाद होती है इन क्षेत्रों में शाम चार बजे घनघोर वर्षा बड़ी गरज के साथ होती है । अत : इसे चार बजे की वर्षा ' कहते हैं । 
  • रात फिर आसमान साफ हो जाता है । भूमध्यरेखीय प्रदेशों की जलवायु उष्णार्द्र प्रकार की होने के कारण कष्टदायक अस्वास्थ्यकर एवं शक्ति को क्षीण करने वाली होती है ।
  •  इसीलिए ये प्रदेश ' शक्तिहीन प्रदेश कहलाते हैं । यहाँ मलेरिया ,पीला ज्वर आदि अनेक बीमारियाँ फैलती हैं । 

भूमध्य रेखीय जलवायु के प्राकृतिक वनस्पति- 

  • वर्षभर ऊँचे तापक्रम तथा घनघोर वर्षा के कारण यहाँ घने वन पाये जाते हैं । इन्हें सेल्वाज कहते हैं । 
  • इन वनों के वृक्ष सदैव हरे - भरे रहते हैं इसलिए इनको सदाबहार वन कहते हैं । 
  • यहाँ के वृक्षों की लम्बाई 30 से 90 मीटर तक होती है वन इतने बने होते हैं कि दिन में भी का प्रकाश छनकर पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता वृक्षों अनेक प्रकार की लता , बेल आदि छाई रहती है इन वनों के मुख्य वृक्ष रबड़ महोगनी गटापार्चा , चन्दन , सिनकोना , रोजवुड , ताड़ , बेंत आदि हैं । 
  • यद्यपि ये वन भूमण्डल के 20 वनक्षेत्र को घेरे हुए हैं , परन्तु आर्थिक उपयोग की दृष्टि से ये व्यर्थ हैं । इसीलिए इनका समुचित शोषण नहीं हो पाया है । 

भूमध्य रेखीय जीव - जन्तु :-

  • यहाँ पर जल , थल तथा वृक्ष तीनों पर रहने वाले जीव - पाये जाते है । 
  • भूमि पर रहने वाले मुख्य पशु हाथी , जंगली सुअर , गैण्डा आदि हैं । नदियों दलदली भागों में दरियाई घोड़े , मगर , कछुआ , घड़ियाल आदि पाये जाते हैं । 
  • वृक्षों के ऊपर अनेक प्रकार रंग - बिरंगी तितलियाँ , चिड़ियाँ , बन्दर , साँप , छिपकली आदि रहती हैं।
  • यहाँ पर टिसी - टिसो नामक जहरीली मक्खियाँ पायी जाती हैं , जो मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत हारिकारक होती हैं । 

भूमध्यरेखीय आर्थिक विकास- 

भूमध्यरेखीय प्रदेशों की उष्ण एवं आर्द्र जलवायु इन प्रदेशों के विकास में सबसे बड़ी बाधा है । आर्थिक दृष्टि से ये विश्व के सर्वाधिक पिछड़े भाग है । आर्थिक विकास की दृष्टि से इन प्रदेशों को दो भागों में बाँटा जा सकता है 
1.अविकसित भाग।
2.अपेक्षाकृत विकसित भाग । 

1 . अविकसित भाग

  • अमेजन तथा कांगो बेसिन इन प्रदेशों के सबसे कम विकसित , भाग हैं । 
  • यहाँ आर्थिक विकास बिल्कुल नहीं हुआ है । अमेजन बेसिन में रहने वाले रैड इण्डियन लोग पशुओं का शिकार तथा प्राकृतिक रबड़ का संग्रह करते हैं । 
  • पारा एवं मनाओस यहाँ के प्रमुख रबड़ संग्रह केन्द्र हैं । कांगो बेसिन में पिग्मी लोग रहते हैं , जिनका मुख्य व्यवसाय शिकार करना है । 
  • वर्तमान समय में यूरोपवासियों में गिनी तट के वनों को साफ करके बागानी खेती प्रारम्भ कर दी है । इसके अन्तर्गत केला , तम्बाकू , कहवा , कपास आदि फसलें पैदा की जाती हैं । 

2. अपेक्षाकृत विकसित भाग- 

मलेशिया तथा इण्डोनेशिया अपेक्षाकृत विकसित भाग हैं । इन भागों में वनों को साफ करके धान , नारियल , साबूदाना , सिनकोना , गन्ना , गर्म मसाले आदि उगाए जाते हैं । मलेशिया तथा इण्डोनेशिया दोनों मिलकर विश्व का 75 % रबड़ उत्पन्न करते हैं । जावा में विश्व का सबसे अधिक सिनकोना पैदा किया जाता है । जावा गन्ना उत्पादन के लिए विश्व प्रसिद्ध है । खनिज पदार्थों की दृष्टि से ये निर्धन प्रदेश हैं । परन्तु कहीं - कहीं यथोचित मात्रा में खनिज निकाले जाते हैं । मलेशिया विश्व का सर्वाधिक टिन उत्पन्न करने वाला देश है । जावा , बोर्नियो तथा सुमात्रा में खनिज तेल निकाला जाता है । कटंगा में ताँबा तथा गिनी तट में सोने की खानें हैं ।
खनिजों के अभाव तथा अन्य आवश्यक सुविधाओं के अभाव में इन प्रदेशों का औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है । औद्योगिक रूप से ये पिछड़े प्रदेश हैं । भूमध्यरेखीय प्रदेशों के आर्थिक पिछड़ेपन के निम्न कारण हैं 
1. यहाँ की जलवायु विषम है ,जो आर्थिक विकास में बाधक है । इस प्रकार की जलवायु में मानव - जीवन अत्यन्त कठिन होता है अतः यहाँ श्रमिकों का अभाव है । 
2.भूमध्यरेखीय प्रदेशों में कृषि योग्य भूमि का अभाव है 
3. इन प्रदेशों में यातायात के साधनों का विकास नहीं हो पाया है । 
4. यहाँ खनिज तथा शक्ति के साधनों का भारी अभाव है ।
5 .यहाँ वनों में उपयोगी लकड़ियाँ पायी जाती हैं , किन्तु यातायात के साधनों के अभाव तथा उपयोगी वृक्षों के एक साथ न मिलने के कारण उनका उपयोग सम्भव नहीं हो सकता है ।
6 .उष्णार्द्र जलवायु तथा विषैले जीव - जन्तुओं के कारण यहाँ मानव स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता । पीतज्वर , मलेरिया जैसी अनेक बीमारियाँ मानव स्वास्थ्य के बिल्कुल प्रतिकूल हैं । भूमध्यरेखीय प्रदेशों की जलवायु उष्ण एवं आर्द्र है ,जो मनुष्य के शारीरिक तथा आर्थिक विकास के प्रतिकूल है । इसलिए यहाँ जनसंख्या बहुत ही कम पायी जाती है । वर्तमान समय में भी यहाँ जंगली तथा असभ्य लोग निवास करते हैं ।

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