भारत में सर्वोच्च न्यायालय के गठन और शक्तियों का वर्णन कीजिए।(Describe the composition and powers of the Supreme Court in India.) ?
न्याय के सर्वोच्च शिखर पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय है जो नई दिल्ली में स्थित है। संविधान के रक्षक, संघीय व्यवस्था के रक्षक और मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय भारत की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है।
सर्वोच्च न्यायालय का गठन:-
सर्वोच्च न्यायालय के गठन की प्रक्रिया इस प्रकार है
1. न्यायाधीशों की संख्या - मूल रूप से सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और सात अन्य न्यायाधीश थे, और संविधान के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालयों की संख्या, का अधिकार क्षेत्र सर्वोच्च न्यायालय, न्यायाधीशों की संख्या। संसद को वेतन या सेवा की शर्तें तय करने की शक्ति दी गई थी। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या संसद द्वारा बढ़ा दी गई है और अब उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 30 अन्य न्यायाधीशों की होगी, वर्तमान अधिनियम 2008 द्वारा यह प्रदान किया गया है कि इस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश है और एक ही प्रणाली। संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से परामर्श करना चाहिए। हो सकता है अगर वह ठीक समझे। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में वह मुख्य न्यायाधीश से होता है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के पास निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिए:-
(1) वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
(2) उसे लगातार पांच वर्षों तक एक उच्च न्यायालय या दो या दो से अधिक न्यायालयों के न्यायाधीश के रूप में कार्य करना चाहिए था या लगातार दस वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में अधिवक्ता रहा हो।
(3) राष्ट्रपति की नजर में उसे उच्च कोटि के कानून का जानकार होना चाहिए। कार्यकाल और महाभियोग - आमतौर पर, सर्वोच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक पद धारण कर सकता है। इस चरण से पहले वह खुद इस्तीफा दे सकता है। कदाचार या अक्षमता की स्थिति में ही न्यायाधीश को संसद द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है। इसके द्वारा संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के 2/3 सदस्यों द्वारा उन्हें अयोग्य घोषित करना आवश्यक है। महाभियोग की प्रक्रिया में न्यायाधीश को अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया जाता है। वेतन-भत्ते और अन्य सुविधाएं- सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को 1,00,000 रुपये मासिक वेतन और 1,250 रुपये मासिक भत्ता मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीशों को 90,000 रुपये मासिक वेतन और 750 रुपये मासिक भत्ता मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट के प्रत्येक न्यायाधीश को स्टाफ, कार और 150 लीटर पेट्रोल प्रति माह की सुविधा भी मिलेगी। जजों के लिए पेंशन और ग्रेच्युटी की भी व्यवस्था की गई है. पेंशन की अधिकतम सीमा मुख्य न्यायाधीश के लिए 60,000 रुपये प्रति वर्ष और अन्य न्यायाधीशों के लिए 54,000 रुपये प्रति वर्ष है। ग्रेच्युटी 50 हजार रुपए है। न्यायाधीशों को वेतन और भत्तों का भुगतान भारत की संचित निधि से किया जाएगा।
उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार उच्चतम न्यायालय के अधिकारों को दो भागों में बाँटा गया है ---
( क ) प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार
उच्चतम न्यायालय के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत निम्न प्रकार के विवाद आते हैं ।
1. विवादों के सम्बन्ध में एकमेव क्षेत्राधिकार है
- ( अ ) भारत सरकार तथा एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद ।
- ( ब ) संघ सरकार तथा एक या एक से अधिक राज्य एक ओर हों तथा एक या एक से अधिक राज्य दूसरी ओर हों ।
- ( स ) जब कभी दो या दो से अधिक राज्यों के बीच में कोई ऐसा विवाद उत्पन्न हो , जिसमें किसी कानून का कोई प्रश्न निहित न हो और जिसके ऊपर किसी कानून अधिकार का अस्तित्व या विस्तार निर्भर हो
2. मौलिक अधिकारों के विषय में संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय के साथ - साथ उच्च न्यायालयों को भी अधिकार प्रदान किया गया है । मौलिक अधिकारों से सम्बन्धित कोई विवाद सर्वोच्च न्यायालय में आरम्भ भी किया जा सकता है तथा उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील के रूप में आ सकता है । अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय विभिन्न प्रकार के निर्देश , आदेश या लेख जारी कर सकता है ।
3. संविधान की रक्षा तथा व्याख्या- संविधान की रक्षा और व्याख्या करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया है । यदि संसद या कार्यपालिका कोई ऐसा कानून बना दे , जो संविधान के विरोध में हो , तो सर्वोच्च न्यायालय उस कानून को अवैध घोषित कर देगा । यह न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार कहलाता है । संविधान की व्याख्या के सम्बन्ध में कम - से - कम पाँच न्यायाधीशों की बेंच बैठती है ।
( ख ) अपीलीय क्षेत्राधिकार-
उच्चतम न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार निम्नलिखित हैं
1. संवैधानिक प्रश्न- यदि कोई उच्च न्यायालय किसी मामले में यह प्रमाण - पत्र दे दे कि इस मामले से कोई संवैधानिक प्रश्न सम्बन्धित है , तो उच्चतम न्यायालय के निर्णय की अपील सुन सकता है ।
2. मुक्त अपराधी को मृत्यु दण्ड- यदि किसी अधीन न्यायालय ने किसी अपराधी को मुक्त कर दिया हो और उच्च न्यायालय ने उसको मृत्युदण्ड दे दिया हो , तो उच्चतम न्यायालय फौजदारी के ऐसे मुकदमों की अपील सुन सकता है ।
3. अधीन न्यायालय में सुनवाई किये जा रहे अभियुक्त को मृत्युदण्ड यदि किसी अभियोग को उच्च न्यायालय ने अपने अधीन न्यायालय से अपने पास मँगाकर अपराधी को मृत्युदण्ड दिया हो , तो उसकी अपील भी उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनी जा सकती है ।
4. प्रमाण पत्र- यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाण पत्र दे दे कि अभियोग उच्चतम न्यायालय के सुनने योग्य है , तो उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय अपील सुन सकता है ।
5. दीवानी मुकदमे दीवानी मुकदमों में यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाण दे दे कि मुकदमे की 20 हजार रुपये या उससे अधिक धनराशि की सम्पत्ति का प्रश्न अन्तर्निहित है , तो उस मुकदमे की अपील उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनी जा सकती है ।
6. कानूनी प्रश्न- यदि उच्च न्यायालय किसी मुकदमे के लिए यह प्रमाण - पत्र दे दे कि मुकदमे में कोई कानूनी प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है , तो इसकी अपील भी उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनी जा सकती है ।
उच्चतम न्यायालय के अन्य कार्य- उच्चतम न्यायालय के अन्य प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं
- 1. राष्ट्रपति को परामर्श- उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति को किसी कानूनी मामले पर परामर्श दे सकता है , किन्तु राष्ट्रपति इस परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है ।
- 2. अभिलेख न्यायालय उच्चतम न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय के रूप में कार्य करता है । इसलिए इसके न्यायाधीशों के निर्णय प्रकाशित किये जाते हैं , जिसमें वकीलों एवं दूसरे न्यायालयों को कानून की व्याख्या में सहायता मिलती है ।
- 3. संसद द्वारा निर्देश- संसद उच्चतम न्यायालय को कोई निर्देश , आदेश अथवा लेख निकालने की आज्ञा दे सकती है ।
- 4. शक्तियों में वृद्धि- संसद कानून द्वारा ऐसी पूरक या सहायक शक्तियाँ उच्चतम न्यायालय को दे सकती है , जो संविधान की किसी धारा के विरुद्ध न हो ।
- 5. अवैध घोषित करना- उच्चतम न्यायालय संसद के द्वारा पास किये गये किसी कानून को अवैध घोषित कर सकता है । यदि यह संविधान के प्रारब्धों के प्रतिकूल है ।
- 6. आज्ञप्ति- अपने अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में उच्चतम न्यायालय कोई भी आज्ञप्ति या आदेश जारी कर सकता है , जो भारत में सभी स्थानों पर समान रूप से मान्य होगी ।
- न्यायिक पुनरावलोकन- न्यायिक पुनरावलोकन न्यायालय की वह शक्ति है , जिसके अधीन वे व्यवस्थापिका के उनके संवैधानिक होने की घोषणा कर सकते हैं , जो उनके अनुसार संविधान की किसी अवस्था के प्रतिकूल हैं । न्यायिक पुनरीक्षण व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानून और कार्यपालिका या प्रशासकीय अधिकारियों द्वारा किये गये कार्यों से सम्बन्धित अपने समक्ष आये मुकदमे में न्यायालय द्वारा उस जाँच को कहा जाता है , जिसके अन्तर्गत वे निर्धारित करते हैं कि वे कानून अथवा कार्य संविधान द्वारा प्रतिबन्धित है अथवा नहीं अथवा संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को अतिक्रमण करते हैं या नहीं । कारबिन के अनुसार- " न्यायिक पुनरीक्षण का अर्थ न्यायालयों को उस शक्ति से है , जो उन्हें अपने न्याय क्षेत्र के अन्तर्गत लागू होने वाले व्यवस्थापिका के कानूनों को वैधानिकता का निर्णय देने के सम्बन्ध में तथा कानूनों को लागू करने के सम्बन्ध में प्राप्त है , जिन्हें वे अवैध और इसलिए व्यर्थ समझें । "
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