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अंतर्जात(Endogenetic) एवं बहिर्जात (Exogenetic)बल क्या है?

अंतर्जात(Endogenetic) एवं बहिर्जात (Exogenetic)बल क्या है?



भूपटल पर पाई जाने वाली सभी भू-आकृतियां परिवर्तनशील है जैसे महाद्वीप, महासागर ,पर्वत ,पठार ,मैदान ,घाटिया आदि।
भू आकृतियों की रचना एवं उनके क्षरण का प्रक्रम पृथ्वी के भुगर्भिय इतिहास के शुरुआती समय से ही शुरू हो गया था और यह प्रक्रिया अब भी जारी है।
भूपटल पर परिवर्तन लाने के लिए कुछ विशेष बलों की आवश्यकता होती है जिन्हें हम दो भागों में बांट सकते हैं।
1.अंतर्जात बल
2.बहिर्जात बल

1.अंतर्जात बल-

इन बलों की उत्पत्ति के मुख्य कारण पृथ्वी के आंतरिक भाग में चट्टानों का तनाव तथा संपीडन ,ताप, दाब तथा घनत्व में बदलाव, रसायनिक तत्वों का योग, रेडियोधर्मी पदार्थों का टूटना, मैग्मा का संचालन आदि है।
इन बालों को भी निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जाता है।

A.पटल विरूपण बल(Diastrophic)-

वे सभी हलचल जिनसे पृथ्वी की पपड़ी झुकती है मूडती है टूटती है और परिणाम स्वरूप धरातल पर बिषमता उत्पन्न करती हैं पटल विरूपण कहलाता है और यह हलचल उत्पन्न करने वाले बलों को पटल विरूपण बल कहते हैं
इन बलों द्वारा भूपटल पर बड़ी-बड़ी भू आकृतियां बनती हैं। यह बल क्षैतिज तथा लम्बवत दोनों दिशा में कार्य करते हैं।
इन बलों को भी निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जाता है।

1.महादेशजनक बल(Epeirogenetic)-

इसका शाब्दिक अर्थ महाद्वीप उत्पत्ति होता है। महाद्वीप की उत्पत्ति से संबंधित बल को महादेशजनक बल कहते हैं।
यह बल दो प्रकार के होते हैं
अ.उत्थान बल 
ब.अधोमुखी बल

2.पर्वत निर्माणकारी बल(Orogenetic Force)-

इसका शाब्दिक अर्थ पर्वतों की उत्पत्ति है। यह बल क्षैतिज दिशा में कार्य करता है।
यह बल दो रूप से कार्य करते हैं

अ.तनाव(Tension)-

जब क्षैतिज बल दो विपरीत दिशाओं में कार्य करते हैं तो उनके प्रभाव से तनाव उत्पन्न होता है इसे तनाव मूलक बल के नाम से भी जाना जाता है। चट्टानों में तनाव के कारण भ्रंश, दरार, चटकन पढ़ते हैं।

ब.संपीडन(Compression)-

जब दो क्षैतिज बल एक ही दिशा में आमने-सामने कार्य करते हैं तो संपीडन होता है। संपीडन के कारण चट्टानों में बलन ,सवलन पड़ जाते हैं

B.आकाश्मिक अंतर्जात बल(Sudden Endogenetic forces) -

पृथ्वी के अंदर अचानक उत्पन्न होने वाले बल को आकाश्मिक अंतर्जात बल कहते हैं ।इसमें भूकंप तथा ज्वालामुखी का निर्माण होता है।

पटल विरूपण बलों द्वारा निर्मित संरचनाएं:-

पटल विरूपण बल के द्वारा पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां निर्मित होती हैं जो संपीडन तथा तनाव के प्रभाव से बनती हैं जो निम्न प्रकार है।

बलन(Folds)-

पृथ्वी के अंदर क्षैतिज बलो के कारण भूपटल चट्टानों में संपीड़न की स्थिति उत्पन्न होती है और चट्टानों में लहरदार मोड़ पड़ जाता है जिन्हें बलन कहते हैं।
इस संरचना में चट्टानों का एक भाग ऊपर उठ जाता है और दूसरा भाग नीचे धंस जाता है। ऊपर उठे हुए भाग को अवनति(anticline) और नीचे धंसे हुए भाग को अभिनति(Syncline) कहते हैं।

बलनो के प्रकार (type of folds)-

संपीडन बल की तीव्रता और शैलो की संरचना के अनुसार बलन के कई प्रकार पाए जाते हैं प्रमुख प्रकार के बलन इस प्रकार हैं।

1.सममित बलन(symmetrical folds)

इस तरह के वलन की दोनों भुजाओं का झुकाव एक-सा होता है।

2.असममित बलन(asymmetrical folds)

3.समनत बलन(isoclinal folds)

वे वलन जिनकी भुजाएँ एक ही दिशा मे झुकी हों एवं वे एक दूसरे के समानान्तर प्रतीत होती है।
4.एकनत बलन(monocline folds)
एक भुजा भू-पृष्ठ पर समकोण बनाती है तथा दूसरी भुजा सिर्फ साधारण रूप मे झुकी होती है
5.परिबलन(Recumbent folds)
इस तरह के वलनों की भुजाएं अर्थात् मुड़े हुये भाग क्षितिज के समानान्तर होते है।
6.प्रतिबलन(Overturned)
एक भुजा दूसरी भुजा पर पलट जाती है।
7.अवनमन बलन(Plunging Folds)
जब कभी बलन का अक्ष क्षैतिज तल के समांतर ना होकर उसके साथ कोई कोण बनाये तो उस बलन को अवनमन बलन कहते हैं।
8.पंखा बलन(Fan Folds)
जब किसी क्षेत्र मे दोनों तरफ से सम्पीडन का दीर्घकाल तक प्रभाव होता रहता है तो उसका मध्यवर्ती भाग मेहराब के रूप मे ऊपर उठ जाता है तथा उसके दायें-बायें मोड़ो का प्रसार हो जाता है। शिलाओं मे मोड़ो की इस तरह रचना हो जाने से उसका रूप पंखाकार हो जाता है। अतः ऐसे वलन पंखा वलन कहलाते है।
9.खुला बलन(Open folds)
इनके भुजाओं के बीच 90 डिग्री से अधिक तथा 180 डिग्री से कम कोण होता है
10.बंद बलन(Close folds)
इसकी भुजाओं में न्यून कोण होता है अर्थात 90 डिग्री से कम होता है।
11.ग्रीवा खंड(Nappe)
जब कभी सम्पीडन के अधिक बढ़ जाने से परिवलित मोड़ का शिलाखण्ड समूह टूटकर अपने मूल स्थान से बहुत दूर पहुंच जाते है तो उसे नापे अर्थात् ग्रीवा खण्ड या प्रच्छेड कहा जाता है। आल्पस तथा हिमालय पर्वतों मे ऐसे अनेक ग्रीवाखण्ड पाये जाते है

भ्रंश(Fault)-
जब भी प्लेटों में खिंचाव अधिक बढ़ जाता है, अथवा शिलाओं पर दोनों पार्श्व से पड़ा दबाव उनकी सहन शक्ति के बाहर होता है, तब शिलाएँ अनके प्रभाव से विस्थापित हो जाती हैं अथवा टूट जाती हैं। 
भर्शं से चट्टानों में दरारे पड़ जाती हैं।
भृशं के प्रकार ( Type of fault)-
सामान भ्रंश(normal fault)
जब किसी भ्रंशतल के सहारे दोनों ओर के शैल-खंड विपरीत दिशाओं में सरकते हैं, सामान्य भ्रंश (normal fault) का निर्माण होता है
उत्क्रम भ्रंश(reverse fault)
इस में भ्रंशतल के सहारे दो शैल-खंड आमने-सामने खिसकते हैं और एक शैल खंड दूसरे शैलखंड पर चढ़ जाता है।
क्षेप भ्रंश(thrust fault)
जब भ्रंशित भूखंड एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाए तो क्षेप भ्रंश बनता है।

सोपानी भ्रंश(step fault)
जब किसी भूभाग में कई समांतर भ्रंश इस प्रकार बन जाए कि भूभाग कई पतली छुट्टियों में टूट जाए और उनके ढाल की दिशा एक ही रहे।
पाश्वीय सपर्ण भ्रंश(lateral slip fault)
भ्रंशतल के सहारे शैल खंडों में क्षैतिज संचलन होने पर पार्श्विक भ्रंश (lateral fault) का निर्माण होता है।

 भ्रंश द्वारा निर्मित भू आकृतियां-
भ्रंशन क्रिया द्वारा स्थलखंड का कुछ भाग ऊपर तथा कुछ भाग नीचे की ओर स्थानांतरित हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप कई प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण होता है जिनमें रिफ्ट घाटी, ब्लाक पर्वत, होर्स्ट, ग्राबेन आदि अधिक महत्वपूर्ण हैं।
इन सभी में सबसे महत्वपूर्ण भ्रंश पर्वत तथा भ्रंश घाटी है,।
जब पृथ्वी के आंतरिक तनाव की शक्ति से प्रभावित होकर कोई उपर उठ जाए अथवा किसी क्षेत्र के आसपास के भाग नीचे दब जाए तो उठा हुआ भाग भ्रंश पर्वत कहलाता है तथा धशा हुआ भाग भ्रंश घाटी कहलाता है।

2.बहिर्जात बल-
बहिर्जात बल अपने अपरदन और निक्षेपन की क्रिया से भूपृष्ठ पर विषमताओं को समाप्त करके समतल भूमि का निर्माण करने का प्रयास करते हैं इसी अनुसार बहिर्जात बल अनाच्छादन का काम करके नई आकृतियों का निर्माण करती है।
इस बल को दो प्रकार से बांटा जाता है।
स्थैतिक शक्तियां
गतिशील शक्तियां
स्थैतिक शक्तियों में अपक्षय तथा गतिशील शक्तियों में अपरदन ,परिवहन एवं निक्षेप प्रमुख होते हैं।

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