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अपक्षय अथवा अपक्षरण(weathering) for upsc 2022 geography optional

अपक्षय अथवा अपक्षरण(weathering) क्या है ?

स्पार्क्स महोदय ने कहां है की प्राकृतिक कारकों द्वारा अपने स्थान पर चट्टानों का भौतिक और रासायनिक विधि द्वारा जो विघटन और अपघटन होता है उसे अपक्षय कहते हैं।
विघटन में चट्टानों पर बल लगने पर चटक कर टूट फूट हो जाती है। और अपघटन में रासायनिक क्रिया द्वारा चूर्ण बन जाती है।
अर्थात मौसम की विभिन्न स्थैतिक क्रियाओं द्वारा चट्टानों के टूटने फूटने को अपक्षय कहते हैं।

अपक्षय के प्रकार (type of weathering):-

अपक्षय को तीन भागों में बांटा गया है।
1.भौतिक अथवा यांत्रिक अपक्षय
2.रासायनिक अपक्षय
3.जैविक अपक्षय

1.भौतिक अथवा यांत्रिक अपक्षय(physical or mechanical weathering):-

इसमें भौतिक बलों द्वारा चट्टानों का विघटन होता है।
अपक्षय के मुख्य कारक तीन है।
सूर्यताप(isolation)
पाला(Frost)
दाब मुक्ति(pressure release)

सूर्यताप(isolation):-

शुष्क उष्ण मरुस्थलीय प्रदेशों में सूर्यताप द्वारा चट्टानों के अपक्षय का कार्य सबसे अधिक होता है। क्योंकि इन प्रदेशों में दिन के समय तापमान अधिक होता है और रात्रि के समय तापमान में गिरावट हो जाती है और इस स्थिति में तपांतर के कारण चट्टानों में तनाव उत्पन्न होता है और दरार पड़ जाती है इस प्रकार चट्टाने बड़े बड़े टुकड़ों में विघटित हो जाते हैं विघटित हुए टुकड़े को पिंड विच्छेदन(block disintegration) कहते हैं।
कई चट्टाने ऐसी होती है जिनमें विभिन्न खनिज पाए जाते हैं और इन खनिज पदार्थों पर ताप का अलग-अलग प्रभाव पड़ता है जिससे कुछ टुकड़े छोटे-छोटे कणों के रूप में विकसित हो जाते हैं। इसे कणिकामय विघटन(granular disintegration) कहते हैं। इस विधि से प्राप्त टुकड़े को शैल मलवा (Talus) कहते हैं।
कुछ चटाने उस्मा की उच्च चालक नहीं होती हैं। इससे क्या होता है कि चट्टानों की ऊपरी भाग शीघ्र ही गर्म हो जाता है जबकि भीतरी भाग ठंडा ही रहता है इस प्रकार ऊपरी परत फैल कर भीतरी भाग से भी अलग हो जाता है। इस क्रिया को अपशल्कन(Exfoliation) कहते है।

पाला(Frost):-

हिमालय जैसे उच्च पर्वतीय प्रदेश तथा ऊंचे अक्षांश जहां पर पाला का अधिक प्रभाव होता है वहां दिन के समय चट्टानों की दरार में सूर्यताप के कारण जल भर जाता है और रात में तापमान हिमांक से कम होने के कारण जल बर्फ में बदल जाता है जिससे पानी का आयतन बढ़ जाता है। इस कारण चट्टान पर लगभग 15 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर दबाव पड़ता है और चट्टानें टूट फूट जाती हैं जल का जमुना बर्फ का पिघलना यह क्रिया निरंतर होती रहती है जिससे चट्टाने अधिक मात्रा में टूटती फुटती हैं इस क्रिया को जमुना पिघलना भी कहते हैं।

दाब मुक्ति(pressure release):-

भू पृष्ठ के नीचे भाग में अग्निये तथा रूपांतरित चट्टान ने पाई जाती हैं इन चट्टानों पर अधिक दाब के कारण संकुचित अवस्था में रहती हैं अपरदन के बाद इन चट्टानों के ऊपर की चट्टाने हट जाती हैं तो नीचे इस चट्टान को दांब से मुक्ति मिल जाती है दाब कम होने से चट्टाने थोड़ा-थोड़ा फैलना शुरू करती हैं और उसमें दरारे पड़ जाते हैं इस प्रकार दाब मुक्ति के कारण चट्टानों का विघटन होता रहता है।

2.रासायनिक अपक्षय(chemical weathering):-

जब चट्टानों का विघटन रासायनिक क्रिया द्वारा होता है तो उसे रासायनिक अपक्षय कहते हैं। रसायनिक अपक्षय अधिकतर उष्ण तथा आद्र प्रदेशों में होता है इसमें जल तथा विभिन्न गैसों के मिश्रण सक्रिय होते हैं।
रसायनिक अपक्षय के निम्नलिखित कारक है।
1.ऑक्सीकरण(oxidation)
2.कार्बोनीकरण(carbonation)
3.जलयोजन(hydration)

ऑक्सीकरण(oxidation):-

जब सैलो पर ऑक्सीजन का प्रभाव होता है तो उसे ऑक्सीकरण कहते हैं। इस क्रिया में जल और वायु में मिली हुई ऑक्सीजन सैलो में उपस्थित लौह से क्रिया कर ऑक्साइडो में बदल जाता है और लोहे को जंग लग जाता है इस तरह से लौह युक्त चट्टाने नष्ट हो जाते हैं।

कार्बोनीकरण(carbonation):-

जब जल में घुला हुआ कार्बन चट्टानों पर प्रभाव डालता है तो उसे कार्बोनीकरण कहते हैं। कार्बोनिक अम्ल का निर्माण कार्बन के जल में घुलने से होता है और यह अम्ल चुना युक्त चट्टानों को शीघ्र ही घोल डालता है।
चूना पत्थर के प्रदेशों में भूमिगत जल द्वारा बड़े पैमाने पर अक्षय होता है। वैज्ञानिकों की माने तो चूना पत्थर वाले प्रदेशों में प्रत्येक 1000 वर्षों में लगभग 5 सेंटीमीटर नीचे भू-तल जाता है।

जलयोजन(hydration):-

जल में जब हाइड्रोजन गैस मिलकर चट्टानों का अपक्षय करती है तो इसे जलयोजन कहते हैं। हाइड्रोजन युक्त जल को सोखने के बाद कुछ ऐसी भूपटल में खनिज होते हैं जो फूल जाते हैं। और भारी हो जाते हैं जिसके कारण दबाव अधिक होने से चट्टाने टूट फूट जाती हैं और उनका रंग रूप बदल जाता है।
क्योलिन मिट्टी इसी प्रकार फेल्डपर से निर्मित होता है।

3.जैविक अपक्षय(biological weathering):-

जैविक अपक्षय जीव जंतु ,वनस्पति तथा मनुष्य द्वारा प्रभावित होता है।

जीव जंतु द्वारा-

लाखों प्रकार के जीव जंतु भूपटल पर पाए जाते हैं जो अपने निवास के लिए चट्टानों को खोदकर, काटकर बिल बना लेते हैं। जैसे चूहे ,खरगोश ,लोमड़ी ,गीदड़ ,बिच्छू ,चिटियां,दीमक आदि।
इस कारण चट्टाने दुर्बल होकर टूट जाती है।

वनस्पति द्वारा-

चट्टानों की दरारों में कई पेड़ पौधे उठ जाते हैं और जब यह पेड़ पौधे अपना विकास करते हैं तो इन चट्टानों की दरारों पर अधिक दबाव डालते हैं जिससे चट्टानों की दरारे अधिक चौड़ी हो जाती हैं और धीरे-धीरे टूट-फूट होने लगता है।

मनुष्य द्वारा-
अपनी आवश्यकताओं के लिए मनुष्य खाने खोदता है। और सुरंग बनाता है तथा भवन निर्माण के लिए चट्टानों को तोड़ता है। इस प्रकार मनुष्य अपक्षय का एक महत्वपूर्ण कारक है।

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