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पुरातात्विक अन्वेषण और उनकी विधियाँ(Archaeological Investigations and their Methods) क्या है?

पुरातात्विक अन्वेषण और उनकी  विधियाँ
(Archaeological Investigations and their Methods)

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पुरातात्विक अन्वेषण की नवीन तकनीकी के विकास के साथ आज न केवल साहित्यिक साक्ष्यों द्वारा प्रदत सूचनाओं को परिपुष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है वरन् विभिन्न विषयों पर एक वैकल्पिक दृष्टिकोण भी ढूढ़ने का प्रयत्न किया जा रहा है। पुरास्थलों की खोज को प्रायः पुरास्थल- अन्वेषण अथवा पुरास्थल-सर्वेक्षण या क्षेत्रीय-सर्वेक्षण कहा जाता है । अंग्रेज पुरातत्वविद इसे 'व्यावहारिक पुरातत्व' या 'फील्ड आर्किऑलॉजी' कहना पसन्द करते हैं। 

 

अन्वेषण या पैदल परिमार्गण (walking tour) से लेकर छायांकन (Aerial photography) तथा चुम्बकीय परीक्षण (Magnetic Prospecting) आदि विधियाँ आजकल पुरास्थलों की खोज के लिए अपनायी जा रही है। इन विधियों का क्रमशः विकास हुआ है। 

ऐतिहासिक काल से सम्बन्धित पुरास्थलों की खोज धार्मिक, साहित्यिक एवं ऐतिहासिक प्राचीन ग्रन्थों में प्राप्त वर्णनों तथा यात्रियों के वृत्तान्तों आदि की सहायता से की जाती थी। भारत में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के निदेशक जनरल कनिंघम ने सातवीं शताब्दी ईसवी के चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग के यात्रा - वृत्तान्त के आधार पर उत्तर भारत के अनेक ऐतिहासिक पुरास्थलों का पता लगाने में सफलता प्राप्त की थी।
जिस काल-विशेष से सम्बन्धित पुरास्थलों की खोज करने का लक्ष्य हो, उन्हीं के अनुरूप क्षेत्र का चुनाव किया जा सकता है। 

पुरास्थलों को खोजने की विधियों को मुख्य दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

1. परम्परागत पुरातात्त्विक पद्धति (traditional archaeological method):-

A. आकस्मिक खोज (Chance Discoveries)


आकस्मिक खोज मानव के क्रिया-कलापों के या प्राकृतिक कारणों से जब किसी पुरास्थल के विषय में बिना खोज ही जानकारी हो जाती है तो इसको आकस्मिक खोज कहते है। बहुत से महत्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध पुरास्थल इसी तरह से मिले हैं भारत के पुरातत्त्व में  'ताम्रनिधियाँ' (Copper Hoards) आकस्मिक तरीके से ही समय-समय पर प्राप्त होती रही हैं।

B. तल- चिह्न संकेत (Surface Indications)

तलचिह्न संकेत मानव के निवास स्थान एवं अन्य क्रिया-कलापों के संकेत चिह्न पुरास्थलों की ऊपरी भाग पर कभी-कभी दिख जाते हैं। प्रागैतिहासिक पुरापाषाणिक स्थलों पर मानव निर्मित एवं प्रयुक्त पाषाण के औजार एवं अन्य उपकरण  मिलते हैं।  

C. साहित्यिक विवरण (Literary Accounts )

साहित्यिक विवरण किसी देश के प्राचीन साहित्य के उपलब्ध साहित्यिक साक्ष्यों एवं यात्रियों के यात्रा- वृत्तान्तों आदि के आधार पर ऐतिहासिक काल के पुरास्थलों की खोज की जा सकती है। 

2. वैज्ञानिक पद्धति(scientific method):-


पुरातात्विक अन्वेषण मे वैज्ञानिक पद्धति का भी मदद लिया जाता है। विज्ञान की  प्रगति के साथ- साथ पुरास्थलों की खोज की अनेक विधियों का विकास हुआ है। वैज्ञानिक विधियाँ अधिक सटीक एवं उपयुक्त हैं, लेकिन ये विधियाँ खर्चली और प्रयोग भी सर्वत्र नहीं हो सकता है। प्रमुख वैज्ञानिक विधियों में भू-परीक्षण, चुम्बकीय परीक्षण, हवाई छायांकन, मृदा-विश्लेषण मृदा- एवं समुद्रतल की पुरातात्त्विक खोज का उल्लेख किया जा सकता है।

हवाई छायांकन (aerial photography)

पुरास्थलों को खोजने का हवाई छायांकन एक महत्वपूर्ण साधन है। हवाई छायांकन से प्राप्त जानकारी के आधार पर किसी क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वेक्षण अधिक सफलता एवं बारीकी के साथ किया जा सकता है। सेटेलाइट के माध्यम से प्राप्त चित्रों के द्वारा पुरातात्विक अनुसंधान कार्य और अधिक आसान हो सकता है। क्योंकि समतल एवं चौरस पुरातात्त्विक स्थल जो सामान्यतः दृष्टिगोचर नहीं होते हैं, इसलिए उनका हवाई छायांकन के द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

भू-परीक्षण सर्वेक्षण (soil test survey)

भू-परीक्षण सर्वेक्षण के माध्यम से ज्ञात पुरास्थलों के विशिष्ट स्थान को ढूंढने की प्रमुख - विधियों में भू-परीक्षण की विधि का उल्लेख किया जा सकता है। भू-परीक्षण की कई विधियाँ हैं। 

A.लौह-शलाका प्रवेश एवं ध्वनि परीक्षण सबसे आसान एवं कम खर्चीली विधियाँ हैं।

B.धातु अभिज्ञापक, विद्युत प्रतिरोधमापक तथा चुम्बकीय परीक्षण आदि बहुत जटिल एवं अधिक खर्चीली विधियाँ हैं जिनका सर्वत्र एवं सभी व्यक्यिों द्वारा प्रयोग सम्भव नहीं है।


इलैक्ट्रॉनिक विधियाँ (electronic methods) -

 पुरातात्त्विक दृष्टि से इलैक्ट्रॉनिक विधियों द्वारा भू-परीक्षण किया जाता है लेकिन इन विधियों में सबसे बड़ी बाधा यह है कि ये विधियाँ व्ययसाध्य हैं। दूसरी कठिनाई यह है कि इलेक्ट्रॉनिक यंत्र सर्वत्र उलब्ध नहीं है। इनके अलावा इनके परिचालन में पर्याप्त अभ्यास एवं बहुत अधिक सावधानी रखने की आवश्यकता होती है। साधारण कोटि के पुरास्थल-सर्वेक्षणों में इलैक्ट्रॉनिक यंत्रों को ले जाना संभव नहीं है।

मृदा विश्लेषण( soil analysis)-

किसी स्थल की मिट्टी के रासायनिक विश्लेषण द्वारा भी पुरास्थलों की खोज की जा सकती है। मानव के आवास के परिणामस्वरूप किसी स्थान की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से विद्यमान फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, एवं कैल्शियम की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। इन तत्वों की मात्रा का विश्लेषण करके पुरास्थल के अस्तित्व के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

सागरतल का सर्वेक्षण (ocean floor survey)

सागरतल का सर्वेक्षण भूमध्यसागर में यूनान एवं इटली के तटों के पास समुद्र में डूबे हुए प्राचीन जहाजों तथा उनमें लदी हुई पुरानिधियों को खोज निकालने में पुरातत्वेत्ताओं को  सफलता प्राप्त हुई। बेथिस्केपलस (Bathyscaples) नामक यंत्र (machine) की सहायता से इस प्रकार का कार्य आसानी से पूरा किया जा सकता है।

इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुरास्थलों की खोज की विधियों में निरंतर प्रगति हो रही है। परम्परागत विधियों में आवश्यक सुधार किये जा रहे हैं। इसके अलावा पुरास्थलों की खोज के कार्य में विज्ञान ने भी उल्लेखनीय योगदान किया है। 

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