जिला न्यायालय के गठन एवं क्षेत्राधिकार -
- देश में सभी नागरिकों को आसानी से न्याय मिल सके , इसीलिए प्रत्येक जिले में एक जिला न्यायालय का गठन किया गया है । ये न्यायालय एक जिला या कई जिलों के लोगों के लिए जनसंख्या और मुकदमों की संख्या के आधार पर होते हैं ।
- जिला न्यायालय उस प्रदेश के उच्च न्यायालय के अधीन कार्य करते हैं । इस न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है ।
- अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताये गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को 24 घण्टे के अन्दर जिला न्यायालय में न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है ।
जिला न्यायालय का गठन :-
हर एक जिला न्यायालय में एक जिला न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश होते हैं , जिनका राज्य का उच्च न्यायालय मुकदमों की संख्या एवं उस जिले की जनसंख्या के आधार पर निर्धारण करता है । संविधान के अनुच्छेद 233 से 236 तक जिला न्यायालय का प्रावधान किया गया है उच्चतम या उच्च न्यायालय की तरह जिला न्यायालय को भी कार्यपालिका से स्वतन्त्र रखा गया है ।
1.न्यायाधीशों की नियुक्ति , तैनाती , स्थानान्तरण तथा पदोन्नति राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श से की जाती है।
2 . जिला न्यायालय या नीचले न्यायालय पर उच्च न्यायालय का हाथ होता है ।
3 . जिला न्यायालय के सभी न्यायाधीशों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने का अधिकार उच्च न्यायालय को ही है । अधीनस्थ या जिला न्यायालय में एक मुख्य तथा आवश्यकतानुसार अन्य न्यायाधीश होते हैं। राज्य का राज्यपाल उच्च न्यायालय के परामर्श से जिला न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है । सामान्यतः राज्यपाल राज्य के न्यायिक सेवा के पदाधिकारियों में से वरिष्ठता या योग्यता के आधार पर जिला न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है , लेकिन जिला न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश ( जिला न्यायाधीश ) के लिए कम से कम 7 वर्ष न्यायिक सेवा का अनुभव होना आवश्यक है । राज्यपाल ऐसे व्यक्ति को भी जिला न्यायाधीश पद पर नियुक्त कर सकता है , जो किसी न्यायालय में कम से कम 7 वर्ष तक अधिवक्ता के पद पर कार्य किया हो । जिला न्यायालय में न्यायाधीश 62 वर्ष की उम्र तक ही कार्य कर सकते हैं । इसके बाद वे अवकाश ग्रहण कर लेंगे ।
जिला न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों की पदोन्नति , स्थानान्तरण एवं उनकी छुट्टी की स्वीकृति उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है । इस सम्बन्ध में नियम एवं कानून उच्च न्यायालय द्वारा ही बनाये जाते हैं । जिला न्यायालय के न्यायाधीश के पद के अन्तर्गत न्यायाधीश , न्यायिक सिविल , अपर जिला न्यायाधीश , सहायक जिला न्यायाधीश , लघुवाद न्यायालय का न्यायाधीश , मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट , अपर मुख्य मजिस्ट्रेट , सेशन न्यायाधीश , अपर सेशन न्यायाधीश , सहायक सेशन न्यायाधीश आते हैं । जिला न्यायालय के न्यायाधीशों को वे सभी वेतन - भत्ते मिलते हैं , जिसे शासन विधि द्वारा निर्धारित करता है ।
जिला न्यायालय के क्षेत्राधिकार :-
प्रत्येक जिले में प्राय: एक जिला न्यायालय की व्यवस्था की गयी है । जिससे जिले के नागरिकों को त्वरित एवं सुगम न्याय मिल सके । जिला न्यायालय राज्य के उच्च न्यायालय के अधीन कार्य करते हैं । जिला न्यायालय को दीवानी एवं फौजदारी दो के क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं
1. दीवानी क्षेत्राधिकार-
दीवानी क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत दो अधिकार आते हैं
( 1 ) भूमि सम्बन्धी विवाद- भूमि सम्बन्धी विवादों की सुनवाई दीवानी न्यायालय में होती है । जिले का दीवानी न्यायालय गैर कानूनी तरीके से किये गये जमीन के क्रय - विक्रय को अवैध घोषित कर सकता है । जमीन पर किसका हक बनता है या इसका कौन कानूनी उत्तराधिकारी है । इसका निर्धारण इस न्यायालय द्वारा होता है । जमीन का वास्तविक मालिक ही भूमि का विक्रय करने का हकदार होता है ।
( ii ) पारिवारिक विवाद- पारिवारिक विवादों को सुनवाई इसी न्यायालय में होती है । यह जिला न्यायालय का मुख्य अंग होता है । तलाक , घरेलू हिंसा एवं महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की सुनवाई इसी न्यायालय में होती है । समाजशास्त्र की प्रो . क्षमा शर्मा का कहना है कि महिलाएँ भी पुरुषों को प्रताड़ित कर रही हैं । जिला न्यायालय में इसीलिए अब महिलाओं की तरह पुरुष भी अपनी घरेलू समस्याओं को लेकर जा रहे हैं । न्यायपालिका पुरुषों की सुरक्षा पर उसी तरह ध्यान दे रहा है जैसे महिलाओं पर ध्यान दिया जाता है।
2. फौजदारी क्षेत्राधिकार नागरिकों के बीच मारपीट , मारकाट , हत्या , डकैती , अपहरण , आदि को सुनवाई जिले का फौजदारी न्यायालय करता है। ऐसे गम्भीर मामलों के अपराधी को यह न्यायालय सजा इसलिए देता है कि वादी को उचित न्याय मिल सके , जिले में शान्ति व्यवस्था कायम रहे तथा पुनः कोई अपराध करने का साहस न कर सके । जिला न्यायालय द्वारा अपराधी सिद्ध किये जाने के बाद वह व्यक्ति उच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है। अपराधियों पर अंकुश लगाने और पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने में न्यायालय को अहम भूमिका मानी जाती है। हत्यारे , वाहुबली , डकैत और माफियाओं के विरुद्ध कोई नागरिक प्राय: गवाही देने को डरता है,लेकिन न्यायाधीश पर उसका कोई असर नहीं पड़ता है । वे ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ अपना निर्णय सुनाते हैं।
जिला न्यायालय पर राज्य के उच्च न्यायालय का पूर्ण नियन्त्रण होता है। यदि किसी मुकदमे का लम्बे समय तक निस्तारण नहीं हो पाता है तो उच्च न्यायालय सम्बन्धित जिला न्यायालय या कोर्ट को उस मुकदमे का अतिशीघ्र निस्तारण का आदेश दे सकता। उच्च न्यायालय किसी भी मुकदमे से सम्बन्धित किसी भी फाइल को अपने पास मंगवा सकता है या अधीनस्थ न्यायालयों को कोई आदेश दे सकता है। किसी भी मुकदमे का स्थानान्तरण वह किसी भी न्यायालय में कर सकता है।
अत: प्रत्येक जिला न्यायालय अपने राज्य के उच्च न्यायालय के नियन्त्रण में कार्य करता है ।
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